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________________ १४४ मetterण , कीदृशाः सन्तो भ्रमन्ति ? इत्याह-- ' फासिंदियभानमपत्ता ' स शैन्द्रियभारसम्मयुक्ता=स्पर्शमात्रै केन्द्रियत्व प्राप्ताः, 'वहिं तहिं चेत्र ' तत्र तत्रैत्र तस्पतिकाय पर फीडशे ? इत्याह-' परभातरुगणगहणे परभरतरुगणगहने = पराः = प्रकृष्टाः सर्वोत्कृष्ट कार्यस्थितिस्त्वात् भवाः उत्पत्तिस्थानानि येषु ते तादृशा तरुगणा: वृक्षगुच्च्गुल्मादिसमृद्दास्तैगैहने गम्भीरे 'पुणो पुणो ' पुनः पुनः मुहुर्मुहुः 'इम' पक्ष्यमाणम् ' अणि ' अनिष्ट प्रतिकूल दुःश्वसमुदय = दु खसमूह = नानाविधमशात वेदनीयरूप 'पारति ' मातुरन्ति । सर्वासा जातीनां कुलकोटयो यथा - ! we " 'एगिदिए पचछ, बारस-सत्त-तिग-सत्त-अहीसा य । विगले सत्त अड नत्र, जल- खह - चउप्पय- उरंग - भुयगे ॥ १ ॥ अद्धत्तेरस वारस, दस दस नवग नरामरे नरए । वारस छवीस पणवीस हुति कुलको डिलम्खाइ ॥ २ ॥ " इति । ( फार्मिदिय भावसंपत्ता) ये सब जीन एक स्पर्शन इन्द्रिय वाले ही होते हैं । और ( तर्हि तर्हि चेव ) उसी वनस्पतिकाय में कि जहाँ ( परभवनरुगणगहणे ) वृक्ष, गुच्छ, गुल्म आदि समृहरूप भव सर्वोत्कृष्ट हैं और उनसे जो गहन बना हुआ है ( पुणो पुणो ) वार २ ( इम) इन वक्ष्यमाण (अणिह ) अनिष्ट - प्रतिकूल (दुक्ख समुदय ) दुःखों को - नाना विध अशात वेदनीय रूप कष्टों को (पावति ) पाते हैं । समस्त जातियों के कुल कोटियों की संख्या इस प्रकार हैं--- पृथ्वीकाय के बारह लाख, अप्काय के सात लाख, तेउकाय के तीन लाख, वायुका के सात लाख, वनस्पतिकाय के अट्ठाईस लाख, " फार्सिदिय भावसपत्ता ” તે મધા જીવા એકલી સ્પન ઈન્દ્રિયથી युक्त होय छे, भने “ ' तहिं तहिं चैव " ते न वनस्पतिजयमा ल्या परभव तरुगण गणे" वृक्ष, गुछ, शुभ शाहि सभूय लव सर्वोत्लष्ट छे भने तेमनाथी ने गहुन जनेस छे “पुणो पुणो " ८. ८८ વાર વાર इम' मा " प्रमाणे “अणिदु ” अनिष्ट-प्रतिपूण " "" दुक्ख समुदय હું ખાને વિવિધ આશાતા वहनीय ३ ष्टीने " पावति" अनुलवे छे सघणी लतियोनी योनियोना પ્રકારાની સખ્યા નીચે પ્રમાણે છે પૃથ્વીકાયના ખાર લાખ, અપ્કાયના સાત લાખ, તેઉકાયના ત્રણ લાખ, વાયુકાયના સાત લાખ, વનસ્પતિકાયના અઠ્ઠાવીસ લાખ, દ્વિઈન્દ્રિય જ્વાના
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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