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________________ सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० २४ याहतकर्म तथाविधफलनिरूपणम् महोसिण सयापतत्त- दुग्गधविस्स - उब्वेयजणगेसु वीभच्छदार - सणिज्जेसु य निच्च हिमपडलसीयलेसु कालोभासेसु य भीम गंभीर लोस हरिसणेसु णिरभिरामेसु निप्पडियार वाहिरोगजरापालिएसु अईव निच्चधयारतमिस्सेसु पइभएसु ववगयगहचंद - सूर - णक्खत्त - जोइसेसु मेयवसामसपडल- पोच्चड -पूयरुहिरुक्कण्ण विलीण चिक्कणरसिया चावण्णकुहिय चिक्खल्लकदमेसु कुकूलानल - पलित्तजालमुम्मुर असिक्खुरकरवत्तधारसु निसिय विच्छ्रयडक नियातोत्रम-फरिस अतिदुस्सहेसु य अत्ताणा असरणा कडुयदुक्खपरितावणेसु अणुवद्ध निरतरवेयणेसु जमपुरिससकुठेसु || सू० २४ ॥ " टीका- ' तस्स य पापस्स तस्य च पापस्य = प्राणवधस्वरूपस्य पाप वृक्षस्य फळ विभाग ' फलनिपाक = " माणातिपातस्य नरक निगोदादि दुःखरूप कटुफल भविष्यती "ति पापपरिणाम, 'अयणमाणा' अजानन्त पापकर्माणः 'नरकतिर्यग्योनिं वर्धयन्ति' इत्यग्रेण सम्बन्ध', वेदनामेव वर्णयति' महन्भय ' "" इस प्रकार " जे विय करेंति पावा पाणवह " यह प्रतिज्ञात पांचवां प्राणवचकर्त्तृवार कह दिया अब सूत्रकार जह य कओ जारिस फल देह " यर चतुर्थ फल द्वार कहते है - ' तस्स य पावस्स ' इत्यादि । टीकार्थ - ( य पावस) इस प्राणवधरूप पाप वृक्षका ( फलविचाग) नरक निगोद आदि दुखरूप कटुक फल भोगना होगा इस बात को ( अयाण माणा ) नही जानते हुए पापीष्ठ जीव ( नरयतिरिक्खजोणि ते प्रतिज्ञात पायभा 66 या रीते " जेविय करेंति पाना पाणवह ” પ્રાણવધ ર્ત્તદ્વારનું વિવેચન સ પૂર્ણ થયુ હવે સૂત્રકાર जह य कओ जारिस फल देइ " मा अतुर्थ इसहारनु विवेशन दरे छे " तस्स य पावस्स "त्याहि अर्थ" -- तरस य पानस्स" मा प्राशुवधश्य पापवृक्षनु “ फलविवाग" न२४ નિગેાદ આદિત્તુ ખરૂપ કડવુ ફળ ભોગવવું પડશે, તે વાતને “ अयाणमाणा "
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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