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________________ ८४ মহাকাল प्रयोगकर्तार इत्यर्थः । 'उत्तणवल्लरदाग्गिणिदयपलीगा' उत्तृणलरदाग्निनिर्दयप्रदीपकाः-उत्तृणाना=अधिवतणाना बनाना, बलराणा-गहनानानामरण्यक्षे त्राणा वा, दयाग्निनादानानलेन निर्दयं दयारहित यथास्यात्तथा प्रदीपका प्रज्वालकाः, 'कूरकम्मकारी' क्रूरकर्मकारिणा कठोरकर्मकर्तारः घातकाः घ्नन्ति= पाणवध कुर्वन्तीति पूर्वेण सम्पन्धः ॥१०२१॥ तानेर जातिनिर्देशपूर्वक वर्णयति-'इमेय वहवे' इत्यादि। मूलम्-इमेय वहवे मिलक्खुजाईया, के ते १, सक-जवणसवर-वब्बर-काय मरुडो-द-भडग-तित्तिय पक्कणिय-कुलक्ख-गोडसिहल-पारस कोचंध-दविल-विल्लल-पुलिद-अरोस-डोंव-पक्कण-गंध हारग-बहलिय-जल्ल-रोम-मास-वउस-मलया-चुंचुया-य चूलियगकोकणग-कणग-सेय-मेया-पण्हव मालव-महुर-आभासिय-अणक्ख चीण-लासिय-खस-खासिया नेहर-मरहट-मुट्टिअ-आरव-डोविलग कुहण-केकय-हूण-रोमग-रुरु-मरुया-चिलायविसयवासी य पावमइणो ॥ सू० २२ ॥ टीका-'इमेय' इमे च-अनुपद वक्ष्यमाणाः 'वहवे' वहवः 'मिलक्खुजाईया' म्लेच्छनातीयाः अनार्याः सन्ति । 'किं ते के ते? इत्याह-'सके ' त्यादि। विष, इन्हें जो जीवो को मारने के अभिप्राय देते है वे, तथा (उत्तणचल्लर-दवग्गि-णिय-पलीवगा) जो निर्दय होकर उत्तणो को-वर्धिततृणवाले वनों को चल्लरों को गहनवनों को अथवा अरण्य के खेतों को दावानल से जला देते हैं वे मव (करकम्मकारी) क्रूरकर्मकारी माने गये है और ऐसे प्राणी ही प्राणवध के करनेवाले होते हैं |सू०२१॥ सूत्रकार इन्ही प्राणियों को जाति निर्देश पूर्वक वर्णन करते हैंनामपान भाटेरेसा भने भरावे छ तेयो तथा ' उत्तण-बल्लर, दवगि, णिय पलीवगा" निय थईन उत्तृवाने पर्धित तृशवाय बनाने, १६રાને.-ગહન વનને, અથવા વનના ક્ષેત્રેને દાવાનળ લગાડીને સળગાવે છે તે प्रधान “कूरकम्मकारी" ₹२४ ४२ना। भानवामा मा छ भने ते ४ પ્રાણવધન કરનાર છે જે સુ ૨૧ . सा मे मोनु तिना नि:श सहित वन ४२ छ " इमेय
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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