SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नव्याकरणसूत्र तज्जीवान् पृथिव्यादि निश्रिताथैर, 'तदाहारे' तदाधारान्=ते पृथिव्यादयः आधारो येपा ते तान् तदाधारान् पृथिव्याधाश्रयान् अथवा 'तदाहारे' तदाहारान् ते पृथिव्यप्तेजोपायमादय ण्य आहारो येपा ते तान् तदाहारान् 'तप्परिणयवण्णगधरसफासमोदित्वे' तत्परिणतवर्णगन्धरसस्पर्शनादि (शरीर) रूपान्तेषामेव पृथिव्यादीना परिणता वर्णगन्धरसस्पर्श यर्या बौदिः शरीर सैव रूप-स्वभावो येपा ते तथा तान् , ' अचासुसे य' अचाक्षुपान्चक्षुरगोचरान् 'चक्खुसे य' चाक्षुपाश्च चक्षुरिन्द्रियविपयान् 'तमकाइए' उसकायिकान् सन्ति उष्णाघभितप्ताः सन्तः विवक्षितस्थानादुद्विजन्ते गन्छन्ति छायाधासेवनायें स्थानान्तरमिति त्रसाः, यद्वा-म नामकर्मोदयात् त्रस्यन्ति इति असा:सनाम• कर्मोदयवर्तिनइत्यर्थः, तेषां कायोराशिस्तन भवाखसफायिका., तान् , फियतः ? इत्याह-'असखे' इत्यादि-'असखे' असख्यान् 'थावरकाए' स्थापरकायान् , विष्ठइत्यादि पदों द्वारा कही जाती है-(तम्मयतजीवए) पृथिवी कायिक आदि जीवों को तथा पृथिवी आदि के सहारे रहे दए जीवों को, (तदाहारे) जिन जीवों के वे पृथिवी आदिक आधारभूत है ऐसे जीवों को अथवा पृथिवी आदिक ही जिनका आहार है ऐसे जीवो को (तप्परिणय वण्णगधरसफासनोदिख्वे ) तथा पृथिव्यादिकों के वर्ण, गध, रस, स्पों से जिनका शरीररूप स्वभाव परणित हो रहा है, तथा (अचक्खुसे य) जो चक्षु इन्द्रिय विपयभूत नहीं है, और (चक्खुसे य) जो चक्षु इन्द्रिय के विषयभूत भी हैं ऐसे त्रस जीवों को-उष्णादिक से सतप्त होकर जो छाया आदि के सेवन के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, अथवा त्रस नामकर्म के उदय से जो युक्त है वे त्रस है, ऐसे सजीवों को, तथा-(असखए यावरकाए य) असरयात स्थावर कायों को, स्थाछ-" तम्मयतज्जीवए" पृथिवी आयिड वान तथा पृथिवी माह माश्रये २स वान 'तदाहारे "२ वाने ते पृथिवी हामृत छ मेर वाने अथवा पृथिवी मालिश भने। माडा छ वा छवाने “तप्परिणय घण्णगधरसफासयोंदिरूवे" तथा पृथिवी माहिना qणु १५, २५, स्पोथी भना शरी२३५ २वमा परिणत 2 Rो छ, तथा “अचक्खुसे य" यक्षु धन्द्रियना विषय३५ नथी, म “चस्खुसे य” २ यक्षुधन्द्रियना विषय३५ पर છે એવા ત્રસ જીવેને ઉષ્ણતા આદિથી દુ ખ પામીને જે છાયા આદિના સેવન માટે એક જગ્યાએથી બીજી જગ્યાએ જાય છે, અથવા ત્રસ નામકર્મના ઉદયથી २युत छ, तेसो सभणाय छे सवा सात, तथा " अससए थावर काय" मसज्यात स्था१२४ायान-यावर नाम भने मध्य भने छे ते स्था१२
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy