SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1087
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुदशिनो टोका १०५ सू.१६ सपशेन्द्रियसवर नामकपञ्चमभावनानिरूपणम् ९३९ प्ठशीपच्छेदनम्= जिम्भयण' जिदान्छेदनम् , 'यसगनयणहिययटतमजण' कृपणनयनहदयदन्तमञ्जनम्=पणम्यमण्डकोशस्य, नयनयोः, रदयस्य दन्ताना च भञ्जनम् विनाशनम् , 'जोत्तलयसापहार' योक्त्रलताकशाप्रहार:-योक्त्रेण रज्जुरिगेपेण, लतया वेगादिलतया कशया च यः प्रहार , प्रहारः, 'पादपण्हिजाणुपत्थरनिवाय ' पादपाणिजानुमस्तरनिपात' पादयोःचरणयोः, पायो :पादपश्चाद्भागयो , जानुनोः= घुटना ' इतिभापा प्रसिद्ध योश्च प्रस्तरनिपातः= पापाणपात', 'पीलण 'पीडन-पन्ने पीडनम् , 'कपिक ' कपिकन्छुः तीवकप्रतिकारकवनस्पतिविशेषः, 'अगणि' अग्नि., 'रियडक' वृश्चिकदश 'वायातवदसमसगनिवाए' वातातपदगमशानिपात घातस्य आतपस्य दशाना मशकाना च निपतेनम् , एतेपा द्वन्द्व , तॉस्तथोक्तान स्पृष्ट्वा, तथा-'दुगिसिज दुनिसीहिया' दुष्टनिपद्यादुनै पेधिक्या-दुष्टनिपया क्षुद्रामनानि, दुनै पेधिकस्य कष्टकर स्वाध्यायभूमयस्ताचस्पृष्ट्वा, 'तेमु तेपु-उक्तेपु 'अमणुन्नपावगेसु' अमनोज्ञपापकेषु नासिका, होठ ओर मस्तक का छेदन करना, 'जिन्भच्छेयण ' जीभ का छेदन करना' वमण-नयग-हियय-दत-भजण' अण्डकोप, नेत्र, हृदय और दातोंका भागना, 'जोत्त लय कस प्पहार' चमडे की रस्सी से, वेत्रादिलता से, तथा चातुक से प्रहार करना, 'पादपण्हिजाणुपत्थर निवोय' पाच, एडी, घुटना,इन पर पत्थर का गिरना, 'पील ग' यत्र में पीलना, 'कवि कच्छु-अगणि-विच्छुय-डक' करेंच की फली,अग्नि और बिच्छू का डक -स्पर्श, 'वायायवदसमसगनिवाए 'शीतकाल में ठडे पवन का लगाना उप्णकाल में धूप का लगना, तथा डांस और मच्छरों का शरीर पर गिरना इन सबके स्पर्श का अनुभव करके(दुणिसिज्जदुनिसीहिया)कष्ट कारकआसन और स्वाध्याय की भूमि के स्पर्श को अनुभव करके (तेस्तु वयु, “जिभच्छेयण " Cसनुन ४२७, “वसण-जयण-हियय-दत-भजण" म आप, नेत्र, ६५ मने हात त31, "जोत्त-लय-क्स प्पहार " याभानी हाथी नेत२-माहि दाताथी तथा यामुउथी २८४२९, " पादपण्हिजाणुपत्थरनिवाय" ५१, मेडी मने यूटए ५२ ५.५२४ ५३षु, "पीलण "-यमा पासपु, "कविकच्छु-अगणि-विच्छय हक "-उरे यानी जी, AG मन विछीन। ७५, “वायायवदसमसगनिवाए " शियामा 83 पवन दावो, जनजामा તડકે લાગવો, તથા ડાસ અને મચ્છરનુ શરીર પર પડતુ, એ બધા સ્પર્શને सरी२ ५२ अनुभव शन " दुणिसिज्जदुनिसीहिया " ८१२४ मासन भने स्वाध्यायनी मिना पशने मनुलपाने " तेसु अमणुन्नपावगेसु" ते
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy