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________________ सुदर्शिनी टीका २०५ सू०८ 'चभुरिन्द्रियसवर'नामकद्वितीयमापनानिरूपणम्२१५ नेन प्रकारेण 'चक्युइदियमा गाभाविभो' चक्षुरिन्द्रियभाग्नाभानितो ' भवइ ' भाति ' अतरप्पा' अन्तरात्मा जीनः। ततश्च 'मणुणामणुण्गमुभिभिरागदोसे' मनोज्ञामनोजमरमिदुरभिगगढेपे, 'पणिहियप्पा' प्रणिहितात्मा 'साहू' साधुः 'मणश्यणकायगुत्ते' मनोवचनकायगुप्त., 'सबुडे' सवृत. 'पणिहिडदिए' मणिहितेन्द्रियो 'धम्म' धर्म 'चरेन ' चरेत् । एपा पदानां व्यायाऽस्यैर प्रथम भागनाया द्रष्टव्या सू० ८॥ प्रकार से (चक्खु इदिय मावणाभाविओ अतरप्पा ) जर चक्षु इन्द्रिय की भावना से भावित अतरात्मा होता हे तर वह (मणुणगामणुण्णसुन्भिदुन्भिरागदोसे पणिहियप्पा) मनोजरूप चक्षुइन्द्रिय के अशुभ विपयमे रागद्वेप से रहित होने से व्यवस्थित आत्मावाला (साहू) साधु(मणवयणकायगुत्ते) अपने मन, वचन और कायरूप योगोको शुभ अशुभके व्यापार से सुरक्षित कर लेता है और (सवुडे ) सवर से युक्त वन कर (पणिहिड दिए) अपनी चक्षुइन्द्रिय को वशमें कर के (धम्म) चारित्र रूप धर्म का (चरेज्ज ) पालक बन जाता है । भावार्थ-सत्रकार ने इस सूत्रद्वारा परिग्रह विरमण व्रतकी द्वितीय भावना जो चक्षु इन्द्रिय सवर नामकी है वह कही है। इस भावना में साधु को ऐसा विचार करना सरझाया गया है कि वह इस प्रकार से अपनी चक्षुरिन्द्रिय की परिणति को ऐसी विचारधारा से सुदृढरूप में वाध कर रखे कि जिससे वह चक्षुरिन्द्रिय के विषयभूत मनोज्ञ रूपमे भावणा भाविओ अन्तरप्पा " स्यारे गतरात्मा सुन्द्रियनी लानाथ लावित थाय छ त्यारे ते “ मणुण्णामणुण्णसुभदुभिरागदासे पणयप्पा" मनास३५ ચક્ષુ ઇન્દ્રિયના શુભ વિષયમાં અને અમને જ્ઞરૂપ ચક્ષુ ઈન્દ્રિયના અશુભ વિષયમાં सगषथी २डित यायी व्यवस्थित सामावाणी "साहू" साधु “ मणवयणका यगुत्ते" पाताना मन, क्यन भने य३५ योगाने शुभ अशुभ प्रवृत्तिथी सुरक्षित मनावी से छे भने “सबुडे "सपरथी युद्धत मनाने “ पणिहिइ दिए" पोतनी यक्ष धन्यने उभा राजान “धम्म" यात्रिय३५ धर्म ना “चरेज" पास अने छ ભાવાર્થ–સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા પરિગ્રહ વિરમણ વતની ચક્ષુઈન્દ્રિય સ વર નામની બીજી ભાવના બતાવી છે આ ભાવના દ્વારા સાધુને એ વિષય સમજાવવામાં આવ્યું છે કે તે એવી પિતાની ચક્ષુઈન્દ્રિયની પ્રવૃત્તિને એવા પ્રકારની વિચાર ધારાથી બાંધી રાખે કે જેથી ચક્ષુઈન્દ્રિય વડે દષ્ટિગત થતા
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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