SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1040
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८९८ प्रभव्याकरण अव्यक्तमहायनिकरणम् , गदितम् सायुरोग्नम् , रटित कललायित-क्लहवाक्य मित्यर्थः क्रन्दितम् इप्टरियोगादो मन्दम् , निर्युष्टम् उच्चाटकरणम् , रसितम् सूकरादिवत् शब्दकरणम् , करुणपिलपितम् पुगदिगृत्या सकरणपिगपकरणम् , एतेपामितरेतरयोगद्वन्द्वः, तानि अत्ता अमणेन । तेसु' तेषु 'अमणुष्णपावएम' अमनोज्ञपापकेपु-अमनोशाशुभेपु, 'सद्देन ' गन्देषु नया-जाणेमु य एवमाइणसु अन्येषु च एरमादिकेपु समुपस्थितेषु शब्देषु 'न रसियान रोपितव्यम्-रोषो न कर्तव्य , न हीलियम' न हीलितव्यम् अवज्ञा न कर्तव्येत्यर्थ , 'न निदि यव्य 'न निन्दितव्यम् निन्दा न कर्तव्या, 'न विमियन्य' न खिसितव्यम् नाम वासन है। जिस प्रकार शृगाल आदि के गद होते है । अस्पष्ट जोर २ से घोलने का नाम उत्कृजित है। आन्त निकाल २ कर रोने का नाम रुदित है । कलहवर्धक वाक्यों का नाम रटित है । इष्ट के वियोग आदि होने पर जो न्दन करते समय वचन निकलते है वे ऋदित वचन हैं। ऊँचे स्वर से जो बोलने में आते हैं वे निर्घष्ट शब्द हैं। सूअर आदि के जैसे शब्दो का घोलना इसका नाम रसित है। पुत्र आदि क मर जाने पर जो करुण विलाप किया जाता है। और उस समय जो शब्द मुंह से निकलते हैं वे करुण पिलपित है। ऐसे शब्दों मे तथा (अण्णेसु य एवमाइण्सु सदेसु ) इसी प्रकार के और भी शब्द जो (अमणुण्णपावएस) अमनोज्ञ अशभ हों उन शब्दों में (समणेण ) श्रमण का कर्तव्य है कि वह उनमें (न झसियन) रोष न करें । અધિકાર આદિમા કુત્કાર આદિપ શબ્દનું નામ ત્રાસન છે, શિયાળ આદિના અવાજ તે પ્રકાર હોય છે જોર જોરથી અમ્પષ્ટ બોલવું તેને ઉજિત શા કહે છે આસુ પાડી પાડીને રડવાના અવાજને દિત શબ્દ કહે છે કલહ વર્ધક વાક્યને રટિત વાક્ય કહે છે ઈષ્ટને વિગ આદિ થતા સદનની સાથ જે વચન નીકળે છે તેને ફદિતવચન કહે છે ? ચા આવાજથી બોલતા વચન નિર્દુષ્ટ શબ્દ કહે છે સૂઅર આદિ જેવા શબ્દો બોલવા તે રચિત શબ્દ કહેવાય છે પુત્ર આદિનુ મત્યુ થતા જે કરુણ વિલાપ કરાય છે અને ત્યાર જે શબ્દો મોઢામાંથી નીકળે છે તે કરુણ વિલપિત કહેવાય છે એવા प्रत्ये तथा " अण्णेसुय एवमाइएमु सद्देसु" मेवा १ Astt vilon eval २" अमणुण्णपावएसु" ममना भने अशुभ डाय ते शहाथी “न रसियव्व " ५ न ४२ " समणेण" ते श्रभानु उभिन छ " न हीलिय व्व" मनी अवज्ञा ४२वी नही, "न निदियव्य " निह न ३२वी, "न
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy