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________________ सुर्शिनी टीकाठ अ० ५ सू०५ सयताचारपालकस्य स्थितिनिरूपणम् ८८३ लक्ष्यते, तयैव श्रमणोऽपि मानापमानयोरननुभवात् हर्पग्लान्योरभानात्मदैकरूप एव भवतीति । तथा-उग्घोसियमुनिम्मल ' मार्जितमुनिमलम् मार्जित-तलोपरिस्थितमलापनयनेन, अतएप-सुनिर्मल-मुपसन्नम् , ' आयममडलतल ।' आदशमण्डलतलमिव-आदर्शः-दर्पणस्तस्य यन्मण्डलवल मण्डलाकार तल तदिव 'पागडभाषेण ' प्रफटभावन-अमायित्वादनिगहितभावेन ' मुद्धभावे ' शुद्धभावः शुद्धः भावः स्वरूपो यस्य स , तथा-'कुजरो ' कुन्जर इस 'सौडीरो' शौण्डीर:= परीपहसैन्यनिर्दलनसमर्थः, 'वसभो व ' पभ र 'जायथामे' जावस्थामा यथा पभो भारोद्वहने सामथ्र्ययुक्तो भवति, तथर स्वीकृतमहातभारोतहने साम र्थ्यसपन्न इत्यर्थ । तथा-'सीहो व ' सिंह इच अमणः, अमुमेवार्थ स्पष्टयवि'जहा' यथा सिंह 'मिगाहिये , मृगाधिप -अथ च तैः ‘दुप्पधरिसे' दुष्पधृ. दिखता है किन्तु एकसा आकार वाला परिलक्षित होता है उसी प्रकार यह साधु भी मान और अपमान के अनुभव से रहित होने के कारण हर्प और ग्लानि, इन दोनों प्रकार के भावो से रहित बन जाता है, अनावह सर्वदा एक रूप में ही रहा करता है। (उग्घोसिय मडल आयसमडलतल व पागडभावेण सुद्धभावे ) माजने से-ऊपर के मैल के हटा देने से-निर्मल बने हुए दर्पणमडल की तरह इस का स्वरूप अमायी होने के कारण प्रकट रूप से शुद्ध रहता है । ( सोंडीरो कुजरो व) कुजर के जैसा यह शौ डीर-परीपहरूपी सैन्य के निर्दलन करने में समर्थ होता है। (वसभोव जायथामे) वृपम की तरह जातस्थामस्वीकृत महाव्रतरूप भार के वहन करने में शक्तिशाली होता है। (सीहोव जहा मिगाहिवे होइ दुप्पधरिसे) सिंह जैसे मृगो का अधिपति और उनके द्वारा अपराभवनीय होता है उसी तरह वह साधु भी એક સરખી લાગે છે એ જ પ્રમાણે સાધુ ૫ણુ માન અને અને અપમાનના અનુભવથી રહિત હોવાને કારણે હર્ષ અને શેક એ બન્ને પ્રકારના ભાવથી २२ मनी लय छे तेथी ते भेशा समभावधी १ २७ छ “ उग्घोसियमडल आय सम डलतलव पागडभावेण सुद्धभावे " भानपाथी- 6परनो मेट १२ ॥ નાખવાથી નિર્મળ બનેલ દર્પણની જેમ તેનુ સ્વરૂપ અમાથી હેવાને કારણે પ્રગટ ३१ १ २ "साडीरो कुजरोव" थीनी मितेशी १२-परी१७३पी सैन्यन। यधाए दी नावाने समय खाय छ “वसभोव जायथामे " वृपलानी म ते स्वीकृत मानत३५ मतनु पठन ४२वाने शतिशाणी हाय छे “ सीहोव जहा मिगाहिवे होइ दुप्पधरिसे " भनि भृगाना अधिपति तथा तेमनाथी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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