SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1009
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुदर्शिनी टोका १५ सू०४ कहानीयमशनादिनिरूपणम् 'सणिदिकय ' सनिधीकृत न पहन कल्पते-परिग्रहविरतत्वात्तस्य। अथ यत्कल्पते तदाह-'जपि य ' यदपि च किञ्चित् 'समणस्स' अमणस्य ‘सुविहियस्स तु ' सुरिहितस्य शोभनाचारयतस्तु, 'पडिगगह पारिस्स' पतद्ग्रहधारिणः पानधारकस्य ' भायणभडोपहि उपकरण पडिग्गहो ' भाजनमाण्डोपध्युपकरण पतद्ग्रहः, तन-भाजनम् उन्दकम् , भाण्ड जलपानम् , उपधि:वस्त्रादिः, तप यत् उपकरणम् सामग्री, तथा-'पडिग्गहो' पतद्ग्रहाम्भोजनपान 'भाइ' भवति । तथा-'पायनपणपायकेमरियापायठवण च' पानमन्धनपानकेसरिका पानस्थापन च, तन-पासन्धन' झोली' इति भापा प्रसिद्धम् , पानकेसरिकापात्रममार्जिका, पानस्थापनपन बखरखण्ठे पान स्थाप्यते तत् , एपा समाहार द्वन्द्व , 'तिष्णि य' त्रीणि च ' पडलाइ ' पटलानि-उपर्युपरिपावरक्षणममये पात्रपरिरक्षणार्थ पाताभ्यन्तररक्षगीयानि उसखण्डानि, तथा-'रत्तपाण' रजस्वाण परिग्रह विरत साधु को ( सनिहिकय ) सग्रह के रूप में अपने पास रखना (न कप्पड ) नही कल्पता है। उस परिग्रहविरत साधु के लिये अपने पास क्या २ वस्तुएँ रखना कल्पता है ? सो सूत्रकार उन्हें बताते है-(समणस्स सुविहियस्स 3 पडिग्गधारिस्स) पानधारी उस सुधिहित शोमनाचारसपन्नश्रमण-साधुके पास (जपि य ) जो भी (भाय णभडोवहि उवगरणपडिग्गहो भवह ) भाजनउन्दक, भाड-जलपात्र, उपधि-वस्त्रादिरूप उपकरण, तया पतग्रह भोजन पात्र हैं ये, तथा(पायरधणपायकेसरिया पायवण च ) पात्रयधन-झोली, पात्रकेसरिका-पाचप्रमाजिका, पात्रस्थापनवस्त्र, तथा (तिणियपडलाइ ) तीनप. टल-ऊपर ऊपर पात्रों को रखने के समय उन पात्रों की रक्षा के लिये पायों के भीतर रखे हुए तीन वन्न खड, (रयत्ताण) जलपात्र ढकने सपना ३५मा पानी पासे रामपा “न कप्प" ४५ता नयी त परियड વિરત સાધુને માટે પિતાની પાસે કયી કયી ચીજો રાખવી કપે છે ? તે તે सत्रहार उछ -" समणास सुविहियस्स उ पडिगाहधारिस्स" पात्रधारीत सुविहित सहायारयुक्त माधुनी पासे "जोपय' रे " भायण भडोयहि उवगरणपडिगहो भइ " मान-Gras, मा- यात्र, 64धि- ६३५ ९५४२, तशा पता -सारन पात्र हाय ते तथा 'पायब धण पायफेसरिया पायट्रवण च” पात्रधन-जी, पात्रमरिता पात्र प्रभात, पात्रस्थापन पर तथा “तिण्णयपडलाइ" पटस-पात्रान मे भीगनी भूवान मते ते पात्रानी २क्षाने माटे पात्रानी १२ रामेस पक्षम, “ रयत्ताण"
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy