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________________ 155 ॥ अष्टादशोदेशकः॥ जे भिक्खू अणहाए णावं दुरूहइ दूरुहंतं वा साइज्जइ ॥१॥ जे भिक्खू णावं किण किणावेइ कीयं आहटु दिज्जमाणं दुरूहइ दुरुहंतं वा साइज्जइ ॥२॥ एवं जो चउद्दसमे उद्देसे पडिग्गहगमो सो यत्रो जाव अच्छेज्जं अणिसिहं अभिहडमाहटु दिज्जमाणं दूरूहइ दूरुहंतं वा साइज्जइ ॥३-५॥ जे भिक्ख थलाओ नावं जले ओक्कसावेइ ओक्कसाते वा साइज्जइ ।।६।। जे भिक्खू जलाओ नावं थले उकसावेइ उकसावेंतं वा साइज्जइ ॥७॥ जे भिक्खू पुण्णं णावं उस्सिंचइ उस्सिचंतं वा साइज्जइ ॥८॥ जे भिक्खू विखुणं णावं उप्पिलावेइ उप्पिलावेंतं वा साइज्छइ ॥९॥ जे भिक्खू पडिणावियं कटु णावाए दुरुहइ दुरुहंतं वा साइज्जइ ॥१०॥ जे भिक्खू उड्ढगामिणि वा णावं अहोगामिणिं वा णावं दुरूहइ दुरुहंतं वा साइज्जइ ॥११॥ ___ जे भिक्खू जोयणवेलागामिण वा अद्धजोयणवेलागामिणि वा णावं दूल्हइ दूरूहंतं वा साइज्जइ ॥१२॥ ____ जे भिक्खू णावं आकसावेई खेवावेइ रज्जुणा कटेणं वा कड्ढावेइ आकसावंत वा खेवावंतं वा कइढावंतं वा साइज्जइ ॥१३॥ . जे भिक्खू णावं अलित्तएण वा दंडेण वा पप्फिडिएण वा सेण वा वलेण वा चाहेइ वाहेतं वा साइज्जइ ॥१४॥ जे भिक्खू णावाउदगभायणेण वा पडिग्गहेण वा मत्तएण वा णावाउसिंचणेण वा णावं उस्सिंचइ उस्सिंचतं वा साइज्जइ ॥१५॥ जे भिक्खू नावं उत्तिंगेण उदगं आसवमाणं उवरुवरिं च कज्जलावेमाणं पेहाए हत्येण वा पाएण वा आसत्थपत्तेण वा कुसपत्तेण वा मट्टियाए वा चेलेण वा चेलकपणेण वा पडिपिहेइ पडिपिहेंतं वा साइज्जइ । १६॥ जे भिक्खू णावागओ णावागयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥१७॥
SR No.009348
Book TitleNishith Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages541
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size32 MB
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