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________________ છંદ जे भिक्खू सचितपट्टियं अव वा अंबपेसियं वा अंबभित्त वा अवसालगं वा अंचचोयगं वा भुजइ भुंजत वा साइज्जइ || ११|| जे भिक्खू सचित्तपट्टियं अंब वा अंबपेसियं वा अंबभित्तं वा अंबसालगं 'चा अंबचोयग वा विडंसइ विडंसं वा साइज्जइ ॥१२॥ जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारस्थिएण वा अप्पणो पाए आमज्जावेज्ज वा पमज्जा वेज्ज वा आमज्जावतं वा पमज्जावेंतं साइज्जः ॥१३॥ एवं उगम यन्वो जाव गामाशुगामं दइज्जमाणे अण्णउत्थिरण वा गारथिरण वा अप्पणी सीसवारिय करावेइ करावेतं वा साइज्जइ ॥११४ - ६८ ॥ | उच्चारस्रवणपरिष्ठापनप्रकरणम् । 1 . जे भिक्खू आगंतागारेसु वा आरामागारेनु वा गाहावइकुळेसु वा परियावसदे वा उच्चारपासवणं परिद्ववेइ परिहवेंत वा साइज्जइ ॥ ६९ ॥ जे भिक्खु उज्जाणंसि वा उज्जाणगिहंसि वा उज्जाणसालंसि वा निजाणंसि वा निज्जाणगिहंसि वा निज्जाणसालंसि वा उच्चारपासवणं परिद्ववेइ परिद्वतं वा साइज्जइ ॥७०॥ जे भिक्खू असि चा अट्टालियंसि वा चरियंसि वा पागारंसि वा दारंसि वा गोपुरंसि वा उच्चारपासवणं परिद्ववेइ परिहवेंतं वा साइज्जई ॥ ७१ ॥ जे भिक्खू दगंसि वा दगमम्गंसि वा दगपईसि वा दगतीरंसि वा दगहाणंसि वा उच्चारपासवणं परिवेह परिद्ववेंतं वा साइज्जइ ||७२ || जे भिक्खू सुन्नगिर्हसि वा सुन्नसालंसि वा भिन्नगिर्हसि वा भिन्नसालंसि वा कूडागारंसि वा कोट्ठागारंसि वा उच्चारपासवणं परिद्ववेइ परिहवेंतं वा साइज्जइ ॥७३॥ जे भिक्खू तणगिहंसि वा तणसालंसि वा तुसगिहंसि वा तुससालंसि वा भुसगिहंसि वा ससासि वा उच्चारपासवणं परिहवेइ परिहवेंत चा साइज्जइ ॥७४॥ जे भिक्खू जाणगिहंसि वा जाणसालंसि वा जुग्गगिहंसि वा जुग्गसालंसि वा उच्चार पासवणं परिद्ववेइ परिद्ववेंतं वा साइज्जइ ॥ ७५ ॥ जे भिक्खू पणियगिहंसि वा पणियसालंसि वा कुवियगिहंसि वा कुवियसालंसि वा उच्चारपासवणं परिद्ववेद परिहवेंतं वा साइज्जइ ॥७६॥ जे भिक्खू गोणगिहंसि वा गोणसालंसि वा महाकुलंसि वा महागिहंसि वा उच्चापासवणं परिद्ववे परिद्ववेंतं वा साइज्जइ ॥७७॥ । इति-उच्चारप्रस्रवण- परिष्ठापनमकरणम् ।
SR No.009348
Book TitleNishith Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages541
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size32 MB
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