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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सु. ३३ जम्बूद्वीपस्यायामादिकनिरूपण ___५४१ ध्यवहारस्तु स्वसमयपरसमयसंमत इति । 'पोग्गल परिणामोवि' अयं जम्बूद्वीपः पुद्गल'परिणामोऽपि भवति, मृतत्वस्य प्रत्यक्षसिद्धत्वादिति । अयं भावः-जम्बूद्वीपोहि स्कन्धरूपः पदार्यः सचावयवसमुदायरूप एव, अवयव सादायिनोऽवयवसमुदायरूपत्वस्य प्रत्यक्षसिद्धत्वात्, नहि अवयवमन्तराऽवयवसमुदायरूपी अवयत्री संभवतीति-अतोऽवयवसमुदायरूपत्वात् अवयवीति ॥ अथ यदि जम्बूद्वीपो जीवपरिणामरूप स्तहि सर्वे जीवा जम्बूद्वीपे उत्पन्न पूर्वा अथवा न इत्याशङ्कायामाह-'जंबुद्दीवेणं' इत्यादि, 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्वद्वीपमध्यजम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'सव्वे पाणा' सबै प्राणाः द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियाः 'सव्वे सत्ता' सर्वे सत्वाः पृथिव्यप्तेजोवायुका पिकलक्षणाः, अनेन सांव्यावहारिकजीवराशि विषयकएवायं प्रश्नः, अनादि निगोदनिर्गतानामेव प्राणजीवादिरूपविशेषपर्यायप्रतिपत्तेः, 'पुढविकाइयत्ताए' पृथिवीकायिकतया पृथिवीकायिकजीवरूपेणेत्यर्थः 'आउकाइयत्ताए' कारण जीव परिणाम को पृथकरूप से यहां ग्रहण किया है वनस्पति आदि को में जीवत्व व्यवहार तो स्वसमय में-जैन मत में और परसमय-अन्यतीर्थिक मत में संमत है। 'पोग्गलपरिणामो वि' यह जम्बूद्वीप इस में प्रत्यक्ष से मृतत्व की 'सिद्धि होने के कारण पुद्गल का परिणामरूप भी है ! तात्पर्य इस कथन का यह है कि जम्बूद्वीप स्कन्धरूप पदार्थ है और जो पदार्थ होता है वह अवयवों का समुदोय रूप ही होता है क्यों कि अवयव समुदायी में अवयव समुदायरूपता प्रत्यक्ष से ही सिद्ध है । अवयव के विना अवयव समुदायरूपी अवयवी होता नहीं है इसलिये अवयव समुदाय रूप होने के कारण यह जम्बुद्धीप एक अश्यवी पदार्थ है ___ 'अंधुद्दीवे णं भंते ! सव्वे पाणा, सव्वे जीवा, सव्वे भूया, सव्वे सत्ता पुढवि काइयत्ताए तेउकाइयत्ताए' हे भदन्त ! इस जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में પણ લેકમાં પૃથ્વિ અને જળમાં જીવત્વને વ્યવહાર થતું નથી એ કારણથી જીવપરિણા. મને સ્વતંત્ર રૂપથી અહીં ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે. વનસ્પતિ આદિકોમાં જીવત્વ વ્યિવહાર તે સમયમાં–જૈન મતમાં અને પરસમય-અન્યતીર્થિક મતમાં પણ સંમત छ. 'पोग्गलपरिणामो 'वि' मम्मूझी५ मा प्रत्यक्षथा भूतनी सिद्धि डावाना ॥ પુદ્ગલના પરિણામરૂપ પણ છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે જમ્બુદ્વીપ કન્વરૂપ પદાર્થ છે અને જે પદાર્થ હોય છે તે અવયવોના સમુદાયરૂપ જ હોય છે કારણ કે અવયવ સમુદાયમાં અવયવ સમુદાય રૂપતા પ્રત્યક્ષથી જ સિદ્ધ છે. અવવ વગર અવયવ સમુદાયરૂપી અવયવી હોઈ શકે નહીંઆથી અવયવ સમુદાયરૂપ હેવાના કારણે આ જબૂઢીપ એક અવયવી પદાર્થ છે. ____ 'जंबुद्दीवेणं मंते ! सव्वे पाणा, सब्वे जीवा, सव्वे भूया, सब्बे सत्ता पुढविकाइयत्ताए 'वेउकाइयचाए' 8 महन्त ! मापूदी नामना बीमा समस्त प्राधु-सन्द्रिय, तेन्द्रिय,
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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