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________________ boe ___ अग्नीपप्रमसिन जनप्रियाणामित्यर्थः 'सुप्पभाणं' सुप्रभाणाम्-विलक्षण दीतिमताम्, 'संखतल विमल निम्मल दधिषणगोखीरफेणरययणिगरप्पणासाणं' शङ्कतलविमलनिर्मलदधिधनगोक्षीर फेनरजतनिकरप्रकाशानाम्, तत्र शंखतलं शङ्खमध्यभागः विमलनिर्मलो यो दधिनधन: स्त्यानीकृतं दधिगोक्षीर फेनस्तु प्रसिद्धः तथा रजतनिकर: रूप्य समुदाय स्तेपामिव प्रकाशः तेज प्रसरो 'येषां ते तथा तादृशानां गनानाम्, 'वइरामय कुंभजुगलमुट्ठियपीवरवरवइरसौंडवष्टियदित्त मुरत्त पउमप्पगासाणं' वज्रमय कुम्भ युगल सुस्थित पीवरवरवज्रसौण्डवर्तित दीप्त सुरक्त‘पद्म प्रकाशानाम्, तत्र वज्रमयं वज्रवत् मुढं कुम्भयुगलं येषां ते तथा मुस्थिता मुसंस्थाना पीवरा, पुष्टा वरावज्रमयी शुण्डावर्तितावृत्ता तस्यां वृत्तशुण्डायां दीप्तानि यानि पदमानि विन्दु जालख्वाणि तेषां प्रकाशो व्यक्तभावो येषां ते तथा तादृशानाम्, तथा-'अन्भुण्णय - मुहाणं' अभ्युनतमुखानाम् पुरोभागे उन्नतत्वात्, तथा-'तवणिज्जविसालकण्णचंचलचलंत 'विमलुज्जलाणं' तपनीयविशालकर्ण चञ्चलचलद् विमलोज्ज्वलानाम्, तत्र तपनीयमयो___ 'सुभगाणं' सौभाग्यशाली होते हैं, अर्थात्-जनप्रिय होते हैं, 'सुप्पभाणं' विल"क्षण दीशिवाले होते हैं, "संखतलविमलनिम्मलदद्धिघणगोखीर फेणरययणिगर पगासाणं' इनका बाह्य प्रकाश शङ्ख के मध्यभाग के जैसा, अत्यन्तनिर्मल दही के पुज के जैसा, गाय के दूध के फेन जैसा-ज्झाग जैला, एवं चांदी के समूह जैसा ' अत्यन्त शुभ होता है 'वहरामयकुंभजुगलसुट्टियपीवरवहरसौ डवष्टिय दित्त सुरत्तपउमप्पगासाणं इनका कुंभ युगल वज्र के जैसा सुदृढ होता है इनका शुण्डादण्ड सुसंस्थान से सुशोभित होता है, पीचर-पुष्ट होता है, श्रेष्ठ वज्र से बना जैसा है, गोल होता है-उस गोल शुण्डादण्ड में अनेक प्रकार के बिन्दु जालरूप पद्मों का व्यक्त भाग स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है 'अक्षुण्णयमुहाणं' इनका मुख आगे के भाग में उन्नत होता है 'तवणिजविसाल कपण चंचल चलंत ' विमलुज्जलाणं' मध्यभाग में अरुण-लाल होने से स्वर्णमय, इतर जीवों की 'सेयाणं' श्वेतामा डाय छ, 'सुभागाणं' सोयी सराय छे मात्-नप्रिय हाय 2. 'सुप्पभाणं' सिक्षy ad खाय छ, 'संखतलविमलनिम्मल दधिधणगोखीरफेणरयय णिगरप्पगासाणं' अमन मा १२५ मना मध्यमानाव, अत्यन्त निमहीना ઢગલા જેવ, ગાયના દૂધને ફીણ જે-ઝાગ જે-અને ચાંદીના સમૂહ જેવો અત્યન્ત शुख डाय छे 'वइरामयकु भजुगल सुद्वियपीवरवरवइर सौंडवट्टियदित्त सुरत्तपउमप्पगासाणं' એમના કુભયુગલ વજના જેવા સુદઢ હોય છે. એમના શુડાદડ સુસંસ્થાનેથી સુશોભિત હોય છે, પીવર-પુષ્ટ હોય છે, શ્રેષ્ઠ વજથી બન્યુ હોય તેવું હોય છે, ગળ હોય છે તે ગેળ થડાઇડમાં એક પ્રકારના બિન્દુજાળ રૂપ કમળને વ્યક્ત ભાગ સ્પષ્ટરૂપથી प्रतीत याय छ 'अमुण्णतमुहाणं' मेमनु मुम भागना भाभी Sad सय छे. तवणिज्जविसालकण्णचंचलचलंतविमलुज्जलाण' मध्य Inti म३-ena Bail -
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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