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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे विमाणे इत्यादि, 'एवं सुरविमाणे अहहिं सएहि' एवमुपयुक्तप्रकारेण समभूमिभागादधस्तनं ज्योतिश्चक्र नवत्यधिकसप्तयोजनशतै स्वाधया प्रज्ञप्तं तथा समथूमिभागादेव सूर्यविमान मष्टभिर्योजनशतैः, तथा-"चंदविमाणे अट्ठर्हि असीएहिं चन्द्रविमानमशीत्यधिकै रष्टभिर्योजनशतैः 'उवरिल्ले तारारूवे नवहिं जोयणसएहि चारं चरइ' उपरितनं तारारूपं नवभियोजनशतै श्वारं चरतीति ॥ ___ सम्प्रति-ज्योतिश्चक्रचारक्षेत्रापेक्षया अवाधा प्रश्नमाह-'जोइसस्स थे' इत्यादि, 'जोरसस्सणं भंते ! हेडिल्लाओ तलाभो' ज्योतिश्चक्रस्य दशोत्तरयोजनशतवाहल्यस्य खल भदन्त ! अधस्तनात् तलात् 'केवइयाए थवाहाए' कियत्या अवाधया 'सुरविमाणे चारं चरई' धर्यविमानं चारं चरतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! ७९० योजन की ऊंचाई पर ज्योतिश्चक्र गति करता है । 'एवं सूर विमाणे अहिं सएहिं उसमें इस समतल भूमिभाग से ८०० योजन की ऊंचाई पर सूर्य विमान गति करते हैं। 'चंद विमाणे अहिं असीएहिं उवरिल्ले ताराख्वे नवहिं जोयणसएहिं चारं चरइ' वहां के आठसौ अस्सी योजन की उंचाई पर अर्थात् सूर्य विमान से ८० योजन की ऊंचाई पर चन्द्र विमान गति करते हैं, वहां से ९०० नव सौ योजन की ऊंचाई पर अर्थात् चन्द्र विमान से २० योजन की ऊंचाई पर तारा रूप-ग्रह-नक्षत्र-एवं प्रकीर्ण तारे गति करते हैं। इस तरह मेरु के समतल भूभाग से ७९० योजन की ऊंचाई पर ज्योतिश्चक के क्षेत्र का प्रारंभ होता कहा गया है यह इनका चार क्षेत्र ऊंचाई में वहां से ११० योजन परिमाण होता है। इसी बात को आगे के सूत्रों द्वारा स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं-'जोइसस्स णं भंते ! हेडिल्लाओ तलाओ केवड्याए अवाहाए सूरविमाणेचारं चरई' इसमें गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि हे भदन्त ! इस समतल भूभाग से ७९० समतभूमिमाथी ७८० योजना या ५२ ज्योति तिरे है. 'एवं सूरविमाणे अदुहिं सएहिं तेभा मा समतल भूमिमाथी ८८० योसननी या ५२ सूर्य विभान गति ४२ छ. 'चंदविमाणे अहिं असीएहि उवरिल्ले तारारूवे नवहिं जोयणसएहिं चार જવું ત્યાંથી ૮૮૦ જનની ઊંચાઈ પર અથત સૂર્યવિમાનથી ૮૦ જનની ઊંચાઈ પર ચન્દ્રવિમાન ગતિ કરે છે, ત્યાંથી ૯૦૦ જનની ઉંચાઈ પર અર્થાત્ ચવિમાનથી ૨૦ જનની ઉંચાઈ પર તારા રૂપ-ગ્રહ-નક્ષત્ર અને પ્રકીર્ણ તારા ગતિ કરે છેઆ રીતે મેરૂના સમતલ ભૂભાગથી ૭૯૦ જનની ઉંચાઈ પર તિશ્ચક્રના ક્ષેત્રને પ્રારંભ થવાનું કહેવામાં આવ્યું છે. આ એમનું ચાર ક્ષેત્ર ઉંચાઈમાં ત્યાંથી ૧૧૦ જન પરિમાણ डेय छे. भार न ५छीना सूत्रद्वारा २५७८ ४२ता था। सूत्रा२ ४३ छ-'जोइसस्स णं भंते । हेडिल्लाओ तलाओ केवइयाए अबोहाए सूरविमाणे चार चरई' भाभां गौतभस्वाभीमे પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે હે ભદત ! આ સમતલ ભાગથી જાની ઊંચાઈ પર
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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