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________________ जम्बूद्वीपमासिस्ते ४८ सद्विधा छेत्ता' एकस्य योजनस्य पष्ठिभागम् एकपष्ठिया छित्वा एकपष्ठिभागान् कृत्वा गुणने कृत्वेत्यर्थः तस्यैक पष्ठि मागस्य 'एगूणवीसाए चुणियामागेहि' एकोनविंशत्या चूर्णिकामागः भागभागैरित्यर्थः अर्थात् एकस्य योजनस्य यः पष्ठितमभागः तस्यैकभागस्यै. कोनविंशतिमागो यः स भागभागस्तैरिति । 'मरिए' सूर्यः 'चवखुप्फासं हन्धमागच्छई' चक्षुः स्पर्श चाविषयतां शीघ्रं गच्छति प्राप्नोतीति अयमर्थः सर्वाभ्यन्तरानन्तरे द्वितीयमंडले दिवसप्रमाणं द्वाभ्यामेकपष्ठिभागाभ्यां हीना अष्टादशमुहूर्तास्तेषां मुहूर्तानामर्दै नवमुहती एकेनैकपप्ठिभागेन हीनास्ततः सामस्त्येनैकपष्ठिभागकरणार्थ नवापि मुहूर्ता एकपष्ठि संख्गया गुण्यन्ते तेभ्य एकपष्ठिभागोऽपनीयते ततः शेषा जाता एकपष्ठिभागाः पंचाशतान्यष्टचत्वारिंशदधिकानि ५४८, प्रस्तुतमंडलमुहर्त्तगतिः ५२५१ योजनअयं च राशिः पप्ठिछेद इकसठ भाग करके उस इकसठ वें भागको 'एगूणवीसाए चुणियाभागे हिं' उन्नीस चूणिका भागसे अर्थात् एक योजन का जो साठवां भाग उसके एक भागमा जो उन्नीसवां भाग वह भाग-उससे 'सरिए' सूर्य 'चक्खुप्फास हव्यमागच्छद नेत्रसे विषय को शीघ प्राप्त होता है। इस कथन का भाव इस प्रकार है-सर्वाभ्यन्तर के द्वितीय अन्तर मंडल में दिवस का प्रमाण दो इकसठ भागसे कम अठारह मुहूर्त का है। उन मुहूर्त का आधा नव मुहर्त होता है। वह एक इकसठिया भागसे होता है। फिर समरत का इकसठवां भाग करने के लिए नव मुहूर्त को इकसठ की संख्यासे गुणा किया जाता है। उसमें से इकसठ भाग लेने पर शेष इकसठ भाग पांचसो अडतालीस रहते है। प्रस्तुत मंडल की मुहूर्तगति ५२५१ योजन: यह राशि साइठ छे दात्मक है। योजन राशि को साद की संख्यासे गुणने पर ३१५१०७ होता है यही करणविभाव नामें परिधि राशि कह कर दिखालाई है । लघुकरने के लिए भाज्य राशि का यसन सत्तावण्ण य सद्विभाएहिं जोयणस्स' ४ यानन साया सत्तापनमा भाग 'सद्रिभागं च एकसद्विधा छेत्ता' ४ nना सभा मामले मेथी छान मर्थात् ४ मा ४शन मा मेम सागर 'एगूणवीसाए चुण्णियामागेहि' योगास यूणि ભાગથી અર્થાત એક એજનને જે સાઠમે ભાગ તેના એક ભાગને જે ઓગણીસમો माथी 'सूरिए' सूर्य 'चक्खुएफासं हव्यमागच्छई' नेतना विषयन शी प्राप्त थाय છે. આ કથનને ભાવ આ પ્રમાણે છે–સર્વાભ્યન્તરના બીજા અંતર મંડળમાં દિવસનું પ્રમાણુ બે એકસાઠ ભાગથી ઓછું અઢાર મુહૂર્તનું છે. એ અઢાર મુહૂર્તના અડધા નવ રુહર્ત થાય છે. તે એક એક સાઠીયા ભાગથી થાય છે. પછી બધાને એકસાઠમે ભાગ કરવા નવ મુને એકસાઈઠની સંખ્યાથી ગુણવામાં આવે છે. તેમાંથી એકઠ ભાગ લેવાથી શેપ એકસઠ ભાગ પાંચસે એક્તાળીસ રહે છે. પ્રસ્તુત મંડળની મુહૂર્ત ગતિ પર૫૧ જન આ રાશી ૬૦ સાદ્ધિથી છેદાત્મક છે, જન રાશીને સાઇડની સંખ્યાથી
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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