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________________ नम्बूद्वीपप्रप्तिसूत्र णक्खत्ते कि संठिए पन्नते' अभिजिन्नामक प्रथमं नक्षत्रं किं संस्थितम् कस्येव संस्थित संस्थान माकारविशेषो यस्य तत् किं संस्थितं प्रज्ञप्तं कथितमिति नक्षत्राणां संस्थानविषयका प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा ! इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'गोसीसावलिसठिए पन्नत्ते' गोशीविलि संस्थितं प्रज्ञप्तम् तत्र गवां शीर्ष गोशीपं तस्य गोशीर्षस्य आवलिः तदीयपुद्गलानां दीर्घरुपा श्रेणि स्तत्समसंस्थानममिजिन्नक्षत्र कथितमिति, अनेनैव प्रकारेण श्रवणप्रभृति नक्षत्राणामपि संस्थानानि ज्ञातव्यानि सर्वेषां संस्थानानां स्वरूपं दर्शयितुं मूलझारो लाघवार्थ गाथा मुदाहरति-'गाहा' इत्यादि गाथा-संस्थानप्रदर्शनपरा श्लोकः तद्यथा-'गोसीसावलि. काहार सउणी पुप्फोवयारवावीय' गोशीविलिः कासारः शकुनिः पुष्पोपचारो वापी च, तत्रामिजिन्नक्षत्रस्य गोशीर्षावलिसदृशसंस्थानं श्रवणनक्षत्रस्य कासारसंस्थानम् तत्र कासार: सरः तडाग इत्यर्थः 'सउणि' शकुनि:-पक्षी तद्वत् संस्थानं धनिष्ठानक्षत्रस्य 'पुप्फो संस्थानद्वार 'एएसिणं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं' अब गौतमस्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! इन २८ नक्षत्रों के बीच में जो 'अभिई णक्खत्ते कि संठिए पण्णत्ते' अभिजित नामका नक्षत्र है उसका संस्थान कैसा कहा गया है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! गोसीसावलिसंठिए पन्नत्ते हे गौतम! गायों के मस्तक को जो आवलि हैं-मस्तक के पुदलों की दीर्घल्प जो श्रेणि है-उस के जैसे संस्थानवाला अभिजित् नक्षत्र कहा गया है मूलकार अब संक्षेप से समस्त नक्षत्रों के संस्थानों को दिखाने के लिये-गाथा कहते हैं-'गोसीसावलिकाहार सउणी पुष्फोक्यार वावी य' यह तो ऊपर प्रकट ही कह दिया गया है कि अभिजित् नक्षत्र का संस्थान गोशीर्षावलि के जैसा है श्रवण नक्षत्र का संस्थान कासारतडाग के संस्थान जैसा है धनिष्ठा नक्षत्र का संस्थान शकुनि-पक्षी के संस्थान जैसा है शतभिषा नक्षत्र का संस्थान पुष्पोपचार के संस्थान जैसा है पूर्व भाद्र સ સ્થાનકાર 'एएस णं भंते । अद्वातीसाए णक्खत्ता' ३ गौतमस्वामी प्रभुने मे ५ युहै महन्त | 241 म४यापीस नक्षत्रानी क्यमा २'अभिइणक्खत्ते किं सठिए पन्नत्ते समिति નામનું નક્ષત્ર છે તેનું સંસ્થાન–આકાર કેવું કહેવામાં આવ્યું છે? આના જવાબમાં પ્રભુ प्रभु ४ छे-गोयमा ! गोसीसावलिसंठिए पन्नत्ते' 3 गौतम। गायोना भरतनी रे આવલિ છે. મસ્તકના પુદ્ગલની દીરૂપ જે શ્રેણી છે તેના જેવો આકાર અભિજિત્ નક્ષત્રને કહેવામાં આવે છે. મૂળકાર હવે સક્ષેપથી સમસ્ત નક્ષત્રના સંસ્થાને–આકારमतावाना माशयथी- -'गोसीसावलिकाहार सउणी पुप्फोवयार वावीय' से તે ઉપર પ્રકટ કરી દેવામાં જ આવ્યું છે કે અભિજિત્ નક્ષત્રનું સંસ્થાન કાસાર-તળાવ જેવા આકારનું છે. ધનિષ્ઠા નક્ષત્રને આકાર શકુની પક્ષી–જે છે. શતભિષફ નક્ષત્રનું
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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