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________________ जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्र अग्गभावकणिल्ले' मौद्गल्यायनं सांख्यायनं च तथा अग्रभान कणिल्मम् तत्राभिनिनक्षत्रं मोद्गल्यायन मोद्गल्यगोत्रम् श्रागनक्षत्रं सांख्यायनं सांख्पायनगोत्रम् धनिष्ठा नक्षत्रम् अग्रभावम् अग्रभावगोत्रम् शतभिषा नक्षत्रं कणिल्लम्-कणिल्लगोत्रम्, 'तत्तोष जाउकणं घणंजए चेव बोधव्वे' ततश्च जातुकर्ण धनंजय चैव योद्धव्यं पूर्वभाद्रपानक्षत्रं जातुकर्णगोत्रम्, उत्तरभाद्रपद नक्षत्रं धनञ्जयगोत्रं ज्ञातव्यम् 'पुस्सायणे य अस्सायणे य भग्गवेसे य अग्गिवेस्से' पुष्यायनं चाश्वायनं च भार्गवेशं चाग्निमेश्यं च, तत्र रेवतीनक्षत्रं पुष्यायनगोत्रम्, तथा अश्विनी नक्षत्रम् आश्वायनमोत्रम् भरणी नक्षत्रं च भार्गवेशगोत्रम् कृत्तिकानक्षत्रम् अगि वेश्यनक्षत्रम् भवति । 'गोयमं भरदाए हिच्चे चेव वासिट्टे' गौतमं भारद्वाज लोहित्यं चैव वासिष्ठम् तत्र रोहिणी नक्षत्रं गौतमगोतम् मृगशिरा नक्षत्र भारद्वाज गोत्रम् आर्द्रा नक्षत्रं लौहित्यायनगोत्रम् पुनर्वसुनक्षत्रं वशिष्ठमोत्रं भवतीति ज्ञातव्यम् 'ओमज्जायण मंडबायणेय पिंगायणेय गोवल्ले' अवमज्जायनं मांडव्यायनं सिंगागन च गोवल्यम् भी सांख्यायनादि गोत्रों को भी जानना चाहिये मृत्रकार ने जो संग्रह गाथा कही है वह उन उन नक्षत्रो के संक्षेप से गोत्र प्रदर्शन के लिये कही है वह गाथा इस प्रकार से है-'मोग्गलायण संखायणेय तह अग्गभावकणिल्ले यह तो उपर प्रकट ही कर दिया है कि अभिजित नक्षत्र का गोत्र मोदग. ल्य है श्रवण नक्षत्र का गोत्र सांख्यायन है धनिष्ठानक्षत्र का गोत्र अग्र भाव है शतभिषा नक्षत्र का गोत्र कणिल्ल है 'तत्तो व जाउकणं धणंजए य बोधवे' पूर्व भाद्रपदा नक्षत्र का गोत्र जातुकर्ण है उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र का गोत्र धनञ्जय है 'पुस्सायणेय अस्सायणेय भग्गवेसेय अग्गिवेस्से' रेवती नक्षत्र का गोत्र पुष्यायन है अश्विनी नक्षत्र का गोत्र आश्वायन है भरणी नक्षत्र का गोत्र भार्गवंश है कृत्तिका नक्षत्र का गोत्र अग्निवेश्य है (गोयनं भरद्दाए लोहिच्चे चेव वासि? रोहिणी नक्षत्र का गोत्र गौतम है मृगशिरा नक्षत्र का भारद्वाज गोत्र है आर्द्रा नक्षत्र का लोहित्यायन गोत्र है पुनर्वसु नक्षत्र का वसिष्ठ गोत्र है पति भाट ४३ छ. २५0 21 20 प्रमाणे छे-'मोग्गलायणसंखायणे य तह अग्गभावक णिल्ले' त 8५२ अट ४ वाम माव्युछे, ममिति नक्षत्रनु ग.त्र भोय છે શ્રવણ નક્ષત્રનું ગોત્ર સાંખ્યાયન છે. ધનિષ્ઠા નક્ષત્રનું ગોત્ર અગ્રભ વ છે, અભિષેક नक्षत्रनु नाम मात्र गुस्स छे. 'तत्तो य जाउण्ण धणंजए चेव बोद्धव्वे पूला५४ा नक्षत्र मात्र तु छ, Gitalg५४ नक्षत्र गार यमय छे. 'पुस्सायणे य अस्सायणे य भग्गवेसे य अग्गिवेस्से य' रेवती नक्षत्रनु पुण्यायन छ. अश्विनी नक्षत्र ગોત્ર આશ્વાયન છે. ભરણી નક્ષત્રનું ગોત્ર ભાર્ગવંશ છે કૃત્તિકા નક્ષત્રનું શેત્ર અગ્નિવેશ્ય छ. 'गोयम भरदाए लोहिच्चे चेव वासिदे' या नक्षत्रनु गात्र गौतम छे. भृगशिरा नक्षत्र ભારદ્વાજ ગોત્ર છે. આદ્રનક્ષત્રનું લેહિત્યાયન ગેત્ર છે પુનર્વસુનક્ષત્રનું વસિષ્ઠ ગોત્ર છે 'ओमज्जायणमंडव्वायणे य पिंगायणे य गोवल्ले' युध्यनक्षत्रनु अपमmय गान छ।
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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