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________________ .................. अगदीगमप्तिसूत्रे नामा पूर्णातिगिर्दशमीरानिः 'पुग्णागि उगमई गांगनई नई ससिद्धा मुहणामा' पुनरपि उग्रस्ती भोगवती यशोमती लसिन्दा गुमनामा, तत्र पुनरपि उग्री नन्दतिशिः एकादशी. तिथिरात्रिः भोगनती मातयि दिशीरागिन, गरामनी जयानिषि स्त्रयोदशीरात्रिः, सर्व मिद्धा तुच्छातिथि चतुर्दशीराषिः, शुधनामा पूर्णागितिः पञ्चदशीगनिरिति । ____ यथा नन्दादि पञ्चतिथिनां निमत्या नश्चदश दिवान विषयो भवन्ति तथा उग्रस्ती प्रभृतीनां निरावृत्या पञ्चदशरातिथयो अनन्तीति तदनिमाह- एवं इत्यादि, 'एवं तिगुणा तिही मो सोसि र ईण' एक्युपर्युक्तक्रमेण त्रिगुणित। एता उग्रवती प्रभृतयः सर्वासां पञ्चदशानामपि रात्रीणां भवन्तीति ।। ___सम्प्रति एकस्याहोरात्रस्य गुहान् गणगितुमाह-'एगगाणं' इत्यादि, एगमेगस्स ण भने ! अहोरत्तस्स' ए कस्ल सलु भना! अहोरामस्य इमुक्षुत्ता पनत्ता' ऋतियशोमती ८ आठवीं जयातिथि की रात्रि का नाम है सर्वसिद्धायद ९ वी तुच्छातिथि की रात्रि का नाम है शुभनामा कद १० वी पूर्णालिथि की रात्रि का नाम है। 'पुणरवि उग्गवई भोगवई जलवई, सनयसिद्धा, सुहामा उग्रवाली यह ११ वी नन्दा तिथि की रात्रि का नाम है ओगवती यह १२ वी भद्रातिथि की रात्रि का नाम है यशो नती यह १३ वीं तुच्छा तिथि की रात्रि का नाम है सर्व मिद्धा यह १४ वीं तुच्छा तिथि की रात्रि का नाम शुमनामा यह १५ वीं पूर्णातिथि की रात्रि का नाम है । 'वं तिगुणा तिहीनो सम्वेसि राईज' जिस प्रकार नन्दा आदि पांच तिथियों के निगुणिल दिये जाने पर १५ दिवस तिथियां होती कही गई है, उसी प्रकार उग्रवती आदि पांच रात्रियों को त्रिगुणित करने पर १५ रात्रि तिथियां हो जाती है। एक अहोरात के मुहरों की गणना'एगमेगस्सणं भंते ! अहोरत्तस्रा कर मुहत्ता पण्णता' गौतनस्वामी ने प्रभु से આ ૮મી તિથિની રાત્રિનું નામ છે. સર્વસિદ્ધ બા ૯ મી તુચ્છા તિથિની રાત્રીનું नाम छ. शुमनामा ॥ १० भी पूर्ण तिथिनी रात्रिनु नाम छे. 'पुणरवि उगवई भोगवई, जसवई, सवसिद्वा, सुहणामा' अवती 21 11 भी नातिथिनी रात्रिनु नाम छे. ભગવતી આ ૧૨ મી ભદ્રાનિથિની રાત્રિનું નામ છે યશેમતી બા ૧૩ મી તુચ્છાતિથિની રાત્રિનું નામ છે. સર્વસિદ્ધિા આ ૧૪ મી તુર છાદિની રાત્રિનું નામ છે. શુભનામા આ १५ भी पूतिनी रात्रिनु नाम . 'एवं तिगुणा तिही सव्वेसिं राईणं' २ प्रभारी નંદા વગેરે પાંચ તિથિઓને ત્રિગુણિત કરવાથી ૧૫ દિવસની તિથિઓ થઈ છે, તે પ્રમાણે ઉગ્રવર્તી વગેરે પાંચ રાત્રિઓને ત્રિગુણિત કરવ થી ૧૫ રાત્રિતિથિઓ થઈ જાય છે. એક અહેરાતના મુહૂર્તોની ગણને एगमेगस्स णं भवे ! अहोरत्तस्स कइ मुडुत्ता पणत्ता' गौतमत्वामी में प्रभुने मेवा
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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