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________________ जमधीपप्रालिको समुद्रे उदयमासादयतीति तन्मतं निराकृतं भवतीति । एतस्य प्रश्नस्योत्तरं पत्रकारोऽतिदेशमुखेनाह-जहा पंचमसए' इत्यादि, 'जहा पंचमसए पढमे उद्देसे' यथा पञ्चशतके प्रथमोदेशके, एतस्यैव जम्बूद्वीपस्य पञ्चमशत के प्रथमोद्देशके कथितं तेनैव प्रकारेणात्रापि सूर्यस्योदयास्तमयनं ज्ञातव्यम्, कियत्पर्यन्तं पञ्चमोदेशस्य प्रथमोद्देशकप्रकरणमिह वक्तव्यं तत्राह'जाव' इत्यादि, 'जाव णेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्य काले पानते समणाउसो' यावन्नैः वास्ति उत्सर्पिणी अवस्थितः खलु तत्र कालः प्रज्ञप्तः श्राणायुष्मन् ! एतत्सूनपर्यन्तं पत्रमशतकस्य प्रथमोद्देशकस्य प्रकरणमनुसन्धेयम्, ___तथाहि-तत्रत्यं प्रकरणम् 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे दिवसे भवइ तयाणं उत्तर वि दिवसे भवइ । जयाणं भंते ! उत्तरद्धे दिवसे भवइ तयाणं जंबुद्दीने दीवे मंदरस्स पच्चयस्स पुरिस्थिापचत्थिमण राई भवइ ? हंता गोयषा! जयाण जंबुद्दीवे दीये दाहिणद्धे दिवसे जाा राई भवा । जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स एनयस्म पुरत्यिमेणं दिवसे भवइ तयाणं पञ्चत्थिमेण वि दिरसे भवइ, जयाणं पचत्थिमेणं दिवसे भवइ तयाण जंबुद्दीवे दीवे मइरस पत्रयस्स उत्तरदाहिणेणं र ई भाइ । हंना, गोयमा ! जयाणं जवुद्दीवे दीवे मंदरस्स पयस पुरस्थिमेगं दिवसे जान राई भण्ड । जय गंभो! जंबद्दीवे दीवे दाहिणद्धे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भाइ, तयाणं उत्तरद्धे वि उकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जयाणं उत्तर उक्कोसए अद्वारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तयाण जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स या अधोगति नहीं कही गई है । इसलिये जो ऐसा मानते हैं कि "सूर्य पश्चिम समुद्र में प्रवेश करके पाताल मार्ग से होकर, पुन: पूर्व समुद्र में उदित होताहै" सो इस सैद्धानिक कान से उनका इस प्रकार का कथन निरस्त हो जाता है इस प्रश्न का उत्तर सूत्रकार ने इस अतिदेशमुख के द्वारा दिया है-'जहा पंचमशए पढमे उद्देसे' जिस प्रकार इसी जम्बूद्वीप प्रज्ञासि के पंचमशतक में प्रथम उद्देशक में कहा गया है उसी प्रकार से सूर्य के उदय अस्त के सम्बन्ध में यहां पर भी जानना चाहिये पंचमशतक के प्रथम उद्देशक का प्रकरण "जाव णेवत्थि उस्तप्पिणी अवटिएणं तत्थ काले पणत्ते" समणाउसो” इस सूत्र तक का यहां ग्रहण करना चाहिये जिज्ञासुओं के निमित्त हम वहां का वह प्रकरण दसजोयया' भुमति मा अधातिवाम माली छ. मेथी २ मा प्रभारी માને છે કે “સૂર્ય પશ્ચિમસમુદ્રમાં પ્રવિષ્ટ થઈને પાતાલ માર્ગમાં થઈને પુનઃ પૂર્વ સમુદ્રમાં ઉદય પામે છે. તે આ સૈદ્રાન્તિક કયનથી તેમનું આ જીતનું કથન નિરસ્ત थलय छे. 20 प्रश्न उत्तर सू।४ रे मा गतिश भुभ माथ्यो है-'जहा पंचम सए प्रढमे उद्देसे' रे प्रभारी दी५ प्रशसिना ५ यम शतना प्रथम देशमा કહેવામાં આવેલું છે, તે પ્રમાણે જ સૂર્યના ઉદય-અસ્તના સંબંધમાં અહીં પણ જાણવું मे. पायम Adl प्रथम देश४४ ५४२ 'जाव णेवस्थि उत्साप्पणी अवट्टिएणं
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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