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________________ प्रकाशिका का-सप्तमवक्षस्कारः स. ८ दूरासन्नादिनिरूपणम् १२३ पूर्वोक्तमेव दिप्रश्नमाह-'तं भंते ! किं एगदिसिं गच्छंति छदिसिं गच्छंति तद् भदन्त ! किमेकदिर विषयकं क्षेत्र गच्छतोऽथवा यावत् पड्दिा विषयकं क्षेत्र गच्छत इतिप्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नियमा छदिसिं गच्छंति' नियमात् पदिधि-नियमतः पइदिग्विषयकं क्षेत्रं गच्छतः, तत्र पूर्वादिषु तिर्यदिक्षु च उदितः सन् स्फुटमेव गन्छन् दृश्यते सूर्यः ऊर्वाधोदिग्गमनं च यथा भवति तथा पूर्वमेव दर्शितमिति यावत्पदग्राह्य प्रकरगं समाप्तम् ॥ ___ सम्पति-एत देव वस्तु अतिदेश पूर्वक मवभासनादि सूत्राण्याह-एवं ओभासेंति' इत्यादि, 'एवं ओभासेंति' एवं गमनमुत्रप्रदर्शितप्रकारेण सूौँ अवभासयतः ईपदुद्योतयतः, यथा स्थूलतरमेव वस्तु दृश्यते, तमेव प्रकारं संक्षेपेण सूत्रकारो दर्शयति-तं मंते' इत्यादि, 'तं आसन्न हुए क्षेत्र पर ही चलते हैं अनानुपूर्वी से अनासन्न क्षेत्र पर नहीं चलते हैं। यदि ऐसा होने लगे तो लोकप्रसिद्ध व्यवस्था में हानि होने का प्रसङ्ग प्राप्त हो जाता है। 'तं भंते ! कि एगदिसिं गच्छति छदिसिं गच्छंति' हे भदन्त ! ये दोनों सूर्य क्या एक दिशा में एक दिशा विषयक क्षेत्र में चलते हैं या यावत् छह दिशा विषयक क्षेत्र में चलते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! नियमा छदिसिं' हे गौतम ! ये दोनों सूर्य नियम से छह दिशा विषयक क्षेत्र में चलते हैं। पूर्वादि दिशाओं में एवं तिर्यक आदि दिशाओं में उदित हुआ सूर्य स्फुट रूप से चलता हुआ दिखलाई देता है तथा उर्व दिशा अधो दिशा में सूर्य का गमन जैसा होता है वैसा वह हमने पहिले प्रकट कर दिया है इस प्रकार यावस्पद प्राय प्रकरण यहां तक समाप्त हुआ है 'एवं ओभासें ति' इस प्रकार गमन सूत्र में प्रदर्शित प्रकार के अनुसार ये दोनों सूर्य ईषत् रूपमें स्थूलतर वस्तको. प्रकाशित करते हैं कि जिससे वह वस्तु दिखलाई देने लगती है इसी विषय को ગૌતમ! એ અને સૂર્યો આનુપૂવથી આસન્ન થયેલા ક્ષેત્ર ઉપર જ ચાલે છે, અનાનપૂવથી અનાસન ક્ષેત્ર ઉપર ચાલતા નથી. જે આ પ્રમાણે થવા માંડે તે લેપ્રસિદ્ધ यस्यामा हानि यानी स्थिति उत्पन्न थाय छे. 'तं भंते ! कि एगदिसि गच्छति छतिमि ઝંતિ હે ભદંત! એ બન્ને સૂર્યો શું એક દિશામાં-એક દિશાવિષયક ક્ષેત્રમાં ચાલે છે. मया यावत हिशा विषय क्षेत्रमा या छ ? मेनाममा प्रभु ४ छ-'गोयमा ! नियमा રિહિં હે ગૌતમ! એ બનને સૂર્યો નિયમપૂર્વક ૬ દિશાવિષયક ક્ષેત્રમાં ચાલે છે. પૂર્વાદ દિશાઓમાં તેમજ તિર્યફ વગેરે દિશાઓમાં ઉદિત સુર્ય ફુટ રૂપમાં ચાલતે જોવા મળે, છે. તેમજ ઉર્વદિશા, અદિશામાં સૂર્યનું ગમન જેવું હોય છે તેવું તે અમોએ પહેલા अट छ..भा प्रमाणे 'यावत् पद' थी पास ४२ मत्रे समास यु छ. 'एवं ओभासें ति' मा प्रभारी मनसूत्रमा प्रति १२ भुमो भन्ने सूर्या ४५२३५मा - શૂલતર વસ્તુને પ્રકાશિત કરે છે. જેથી તે વસ્તુ જોવામાં આવે છે. એજ વિષયને સત્ર
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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