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________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः जू. ३१ अभिषेकनिगमनपूर्वकमाशीर्वादः ७३३ तत्रैक ईशानः भगवन्तं तीर्थंकरं करतलसंपुटेन करनलयोः, उन्धो व्यवस्थितयोः संपुटं शुक्तिका संपुटमिवेत्यर्थः, तेन गृह्णाति 'गिलित्ता' गृहीत्वा 'सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सण्णिसण्णे' सिंहासनवरगतः पौरस्त्याभिमुखः पूर्वाभिमुखः सभिएण्णः, उपविष्टवान् ‘एगे ईसाणे पिट्टओ आयवत्तं धरेड्' एक ईशानः पृष्टतः, आतपत्रं-छन्नं धाति 'दुवे ईसाणा उभो पसिं चामरुक्खेत्रं करेंति' द्वादीशानी उभयोः पार्श्वयोः, चामरोत्क्षेपं कुरुतः 'एगे ईसाणे पुरओ खुलपाणी चिटई' एक ईशान पुरतः शूलपाणिः शूल: पाणौ हस्ते यस्य स तथा भूतः सन् तिष्ठति 'तएणं ले सके देविदे देवराया आभियोगे देवे सहावे' ततः, ईशानेन्द्रेण भगवतः, तिर्थकरस्य करसंपुटे ग्रहणानन्तरं खलु सशको देवेन्द्रो देवराजा, आभियोग्यान, आज्ञाकारिणो देवान् शब्दयति आह्वयति 'सदायित्ता' शब्दयित्वा, आहूप 'एसो वि तहचेव आणत्ति देइ ते चितवचेव उवणेति' एषोऽपि शक्रः, तथैव अच्युतेन्द्रवदभिषेकविषयकानाज्ञप्तिको ददाति तेऽपि-आभियोगिकाः, देवाः, तथैव अच्युतेन्द्राभियोग्यदेवाइव, अभिषेकवस्तूनि, एक ईशानेन्द्र ने भगवान् तीर्थकर को अपने करनाल संपुट द्वारा पकडा निमिहत्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिहे सणसणे' और पकडकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सिंहासन पर बैठ गया 'एगे ईसाणे पिओ आपत्तं धरेइ, दुवे ईसाणा उमओपालि चामरुस्खेवं करेंति' दूसरे ईशानेन्द्र ने पीछे से खडे होकर प्रभुके ऊपर छत्रताना दो इशानेन्द्रों ने दोनों ओर खडे होकर प्रभुके ऊपर चामर दोरे 'एगे ईलागे पुरओ सूलपाणी चिट्ठई' एक ईशानेन्द्र हाथनें शूल लेकर प्रमुके साम्हने खडा हो गया 'तएणले सक्के देषिदे देवराया आभियोगे देवे सदावेह' इसके बाद देवेन्द्र देवराज शक ने अपने आभियोगिक देवों को बुलाया-'सद्दा. वित्ता एसोवि तहवेध अभिलेआणन्ति दे ते वि सं चेव उवणेति' और बुलाकर इसने भी अच्युतेन्द्र की तरह उन्हें अभिषेक योग्य सामग्री लानेकी आज्ञा दी 25 गयो 'विउव्यित्ता एगे ईसाणे भगवतित्थयरं करयलसंपुडेगं गिण्हइ' समांथी मे शा. नेन्द्र भगवान तीथ १२ने पाताना ४२ सटमा 88.व्या. गिहित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमूहे सण्णिसण्णे' भने ५४२ AL त२५ भुम राजन सिहासन ५२ मे सार्या 'पगे ईसाणे पिओ आयवतं धरेइ, दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुक्खेवं करें ति' मालत मे ઈશાનેન્દ્ર પાછળ ઊભા રહીને પ્રભુ ઉપર છત્ર તાણ્યું. બે ઈશાનેન્દ્રોએ બને તરફ ઊભા રહીને પ્રભ 6५२ यम२ .. २ात ४२१. 'एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चितुइ' ये शानेन्द्र डायमा शूर वन प्रभुनी साने मे २हो. 'तएणं से सरके देरिदे देवराया आभियोगे देवे सदावेई' त्यार महेन्द्र देवरा शई पोताना लिया हैवान माराव्या-'वहावित्चा एसो वि तह चे। अभिसे आणत्ति देव ते वि त चेव उवणेति' मने मासावीन तेणे ५य अच्युतेन्द्रना જેમ તે બધાને અભિષેક ગ્ય સામગ્રી એકત્ર કરવાની આજ્ઞા કરી. અય્યતેન્દ્રના આભિ
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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