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________________ जन्बूद्वीपतिसरे तथा 'उत्तरद्धलोकाहिबई उत्तरार्द्ध लोकाधिपतिः, मेरोरत्तरनोऽस्यनाऽऽधित्यात् ईशाननामा द्वितीय इन्द्रः पुनः कीदृशः, तत्राह-'अट्ठावीस विमाणवाससयसहस्साहिबई' अष्टाविंशति विमानावासशतसहस्राधिपतिः, अष्टाविंशतिलक्षविमानस्वामीत्यर्थः । तथा 'अरयंवरवत्यधरे अरजोऽवरवस्त्रधरः, अरजांसि पांवरहितत्वात् निर्मलानि अम्बस्दनाणि स्वच्छतया आकाश कल्पानि वसनानि धरति यः स तथाभूतः, आकाशवत् निर्मलदस्त्रधारीत्यर्थः 'गवं जहा सक्के' एवम् उक्त प्रकारेण यथा शक्रस्तथाऽयमपि बोध्यः 'इमं णाणत्त' इदमत्र नानात्वं विशेषः, अस्य 'महाघोसा घंटा लघुपरक्कमो पायत्ताणियाहिवई' महाघोमा घण्टा लघुपराक्रमः लघुपराक्रमनामा पदात्यनीकाधिपतिः 'पुप्फओ रिमाणकारी' पुष्पक:-पुष्पकनामा विमानकारी 'दक्खिणे निजाणलग्गे' दक्षिणो निर्याणमार्गः दक्षिणा निर्याणधूमिरित्यर्थः 'उत्तरपुरथिमिल्लो रइकरपवओ' उत्तरपौरस्त्यो रतिकरपर्वतः 'संदरे समोसरिओ जाव पज्जुवासइत्ति' मन्दरे समवस्तः समागतो यावत् पर्युपास्ते इति अत्र यावत्पदात् 'भगवंतं तित्थयरं है, उत्तराद्धलोक का जो अधिपति है 'अट्ठावीसविनाणावाससयसहस्साहिबई अट्ठाईस लाख विमान जिलके अधिपतित्व से हैं 'अत्यंबरवत्थधरे' निर्मल अम्बरवस्त्रों को स्वच्छ होने के कारण आकाश के जैसे वस्त्रों को धारण किये हुए 'मंदरे समोसरिओ' सुमेरू पर्वन पर आया ऐसा सम्बन्ध यहां पर लगालेना चाहिये 'एवं जहा सबके शक्र-सौधर्मेन्द्र जिस प्रकार के ठाटबाट से आया वैसे ही ठाटवाट से यह भी आया 'इनं णाणतं शक के प्रकरण की अपेक्षा इसके इस प्रकरण में अन्तर केवल यही है कि इस ईशान की 'महाघोला घंटा, लहुपरक्कमो, पायत्ताणियाहिवई, पुप्फओ विमाणकारी, दक्खिणे निजाणमग्गे, उत्तरपुरथिमिल्लो रइकरपव्वओ' महाघोपा नामकी घंटा है लघुपराक्रम नामका पदात्यनीकाधिपति है पुष्पक नामका विमान है दक्षिणदिशा इसके निर्गमन की भूमि है उत्तर पूर्वदिशावर्ती रतिकर पर्वन है 'समोसरिओ जाव' छ. 'सुरिंदे उत्तरद्धलोगाहिवई' सुशन रेन्द्र छ, त र मपति छे, 'अट्ठावीसविमाणावाससयसहस्साहिवई' मध्यावीस दा विमान ना मधिपतिमा छे. 'अरयंवरवत्थधरे' नि मम२ पत्रोन-२१२७ बात साधे माश 24 पोन धा, शत 'मंदरे समोसरिओ' सुभे३ त ५२ साव्या. गेवा समय 81 131 .. . 'एवं जहा सक्के २ प्रमाणे श-सौधमेन्द्र 18-भा साथै माव्या लातेवा। 818 भा४ साथ ते ५ माव्या. 'इमं णाणत्तं' 81 रनी अपेक्षा 1 प्रभा माटो त छ । 2. शाननी 'महाघोसा घंटा, लहुपरक्कमो, पायत्ताणियाहिवई, पुप्फओ विमाणकारी, दक्खिणे, निजाणमगे उत्तरपुरथिमिल्लो रइकरपव्व ओ' भडावाषा નામક ઘંટા છે. લઘુ પરાક્રમ નામક પદાત્યની કાધિપતિ છે. પુષ્પક નામક વિમાન છે. દક્ષિણ દિશા તરફ તેના નિર્ગમન માટેની ભૂદ્ધિ છે. ઉત્તર પૂર્વ દિશાવતી રતિકર પર્વત
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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