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________________ :०२ . . जम्बूदीपप्राप्तिस्ते :शाकिन्यादि दुष्टदेवताभ्यो दृग्दोपादिभ्यश्च रक्षाकरी पोट्टलिका वघ्नन्ति 'वंधेत्ता' बद्ध्वा 'णाणामणिरयणभत्तिचित्त दुविहे पाहाणवट्टगे गिडंति' नाना मणिरत्नमक्तिचित्रौ-नानामणिरत्नानां विविधचन्द्रकान्तहीरकादीनां भक्तीरचना तया विचित्रौ द्विविधौ पापाणवृत्तको पापाणगोलको गृह्णन्ति 'गहाय' गृहीत्वा 'भगवो तित्थयास्स कण्णमूलंमि टिटियाविति' भगववस्तीर्थङ्करस्य कर्णमूले तौ पाषाणगोलको संयोज्य 'टिहियाति' परस्परं ताडनेन टिट्टीतिशब्दोत्पादनपूर्वकं वादयन्तीत्यर्थः 'टिट्टियाति' अनुकरणशब्दोऽयम् अनेन हि बाललीलाक्शादन्यत्र व्यासक्तं भगवन्तं वक्ष्यमाणाशीर्व वनश्रवणे पहुं कुर्वन्तीतिभावः, 'भवउ भगवं पव्वयाउए २' भवतु भगवान् पर्वतायुः भवतु भगवान् पर्वतायुः इत्याशीर्वचनं ददाति • इति । 'तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ भगवं तित्थयरं राखकी पोलियां बनाई जिन और जिन जननी की शाकिनी आदि दुष्ट देवियों 'से एवं दृष्टिदोप से रक्षा करनेवाली ऐसी पोहलिका तैयार की और उसे उनके गले में बांध दिया 'बंधेत्ता णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे. 'गिण्हंति' बांधने के बाद फिर उन्हों ने अनेक मणि और रत्नों से जिनमें रचना हो रही है और इसी से जो विचित्र प्रकार के हैं ऐसे दो गोलपाषाण को-बटईयों को शालिग्राम की जैसी छोटी-छोटी दो वटइयों को उठाया-'गहाय भगविओ.तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिटियाति' और उठाकर उन्हें भगवान् तीर्थ'कर के कर्णमूल पर ले जाकर वजाया-कि जिस से उनके वचन से टी टी ऐसा शब्द निकला 'टिटियाति' यह अनुकरण शब्द है । इससे यह प्रकट किया गया है कि बाललीला के वश से यदि भगवान् का चित्त अन्यत्र आसक्त हो तो वह एक जगह आजावे ताकि वक्ष्यमाण इस आशीर्वाद के वचनों को वे सावधान से सुन सकें 'भवउ भगवं पञ्चयाउए आप भगवान पर्वत के वरायर आयुवाले हों • જિન અને જિન જનની ની શાકિની વગેરે દુષ્ટ દેવીઓથી તેમજ દષ્ટિ દેષથી રક્ષા કરનારી એવી તેમણે પિટ્ટલિકા તૈયાર કરી અને પછી તે પિટ્ટલિકા તે તેમના ગળામાં બાંધી દીધી. बंधेत्ता, णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे गिण्हंति' मध्या माई तेभरे मन મણિઓ અને રત્નની જેમાં રચના થઈ રહી છે અને એનાથી જ જે વિચિત્ર પ્રકારના ', मेवा मे पाषाण:-शसियाम वा मारना मे पाषा-PAI. 'गहाय भग विओ तित्थयरस्स फण्णमूलंमि टिट्टियावें ति' मन. पी. तेभर मगवान् ती ४२ना - મૂલ ઉપર લઈ જઈને વગાડ્યા. કે જેથી તેમના વજનથી જ ટી–ટી એ શબ્દ નીકળે 'टिट्रिया'ति' मनु४२यात्म४ ५४ . सनाथी म पात ४८ ४२वामा माकी छ । બાળલીલાના કારણથી જે ભગવાનનું ચિત્ત અન્ય સ્થળે આસક્ત હોય તે તે એક સ્થાને આવી જાય. જેથી વયમાણ આ આશીર્વાદના વચનેને તેઓથી સાવધાન થઈને સાંભળી :: 'भवन भगवं पव्वयाउए' भा५ मापान पति १२१२ मायुष्यवाणा था-मा. 'तराएण
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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