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________________ ६०० सम्वृद्धीपप्रतिर ततः तासामाज्ञप्त्यनन्तरं खलु ते आभियोगा:-अज्ञाकारिणो देवाः ताभिः रुचकमध्यवास्तव्याभिः चतसृभिः दिक्कुमारीमहत्तरिकामिरेवम् उक्तप्रकारेण उक्ता आज्ञप्ताः सातः हनुष्टा यावद् विनयेन वचनं प्रतीच्छन्ति स्वीकुर्वन्ति अन, यावत् पदात् हृष्टतुष्टचित्तानन्दिताः सुमनसः परमसौमनस्थिताः हर्षवशविसर्पदहदया इति ग्राह्यम् 'पडिच्छित्ता' प्रतीप्य स्वीकृत्य, 'खिप्पामेव चुल्लहिमवंताओ वासहरपाक्याओ सरसाई गोसीसचंदणकट्ठाई साहरंति' क्षिप्रमेव शीघ्रातिशीघ्रमेव क्षुद्रहिमवतो वर्षधरपर्वतात् सरसादि-रससहितानि गो शीर्षचन्दनकाष्ठानि संहरन्ति समानयन्ति 'तएणं ताबो मज्झिमरुर गवस्थवाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सरगं करेंति' ततः र लु तदनन्तरं दिल ताः मध्यरचकपर्वतवास्तव्याः चतस्रो दिवकुमारी महतरिकाः शरकं शरप्रतिकृति तीक्ष्णमुरुमन्युत्पदकं काष्ठ विशेष कुर्वन्ति, 'करित्ता' कृत्वा 'अरणिं घडति' अरणि घटयान्त-तेनैव शरवेण सह अरणि वयणं पडिच्छंति' इस प्रकार उन रुचक मध्य वासिनी चार महत्तरिक दिक्क मारियों द्वारा आज्ञप्त हुए वे आभियोगिक देव हृष्ट तुष्ट यारत हुए और बडी विनय से उन्हो ने उनके वचनों को स्वीकार कर लिया यहां यावत्पद से 'कृष्ट तुष्ट चित्तानन्दिताः, सुमनसः परम सौमनस्थिताः हर्पवशविसर्पद् हृदया। इस पाठका ग्रहण हुआ है 'पडिच्छित्ता खिप्पामेव चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइं गोसीसचंदणकट्ठाई साहरंति' आज्ञा के वचनों को स्वीकार करके वे आभियोगिक देव क्षुद्रहिमवत्पर्वत पर गये और वहां से गौशीर्ष सरस चन्दन की लकडियां ले आये 'तएणं ताओ मज्झिमरुयग वत्थव्य भो चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ सरगं करें ति' इसके बाद उन चार मध्यरुचक वासिनी महत्तरिक दिक्कुमारियों ने अग्नि को उत्पन्न करने वाला शरक नामका काष्ठ विशेप तैयार किया 'करित्ता अरणि घडेंति उसे तैयार करके उसके साथ अरणिकाप्ठ को संयोजित किया 'अरणिं घडिता सरएणं वुत्ता समाणा हट्ट तुद्वा जाव विणएणं वयणं पडिच्छंति' या प्रमाणे ते २५४ मध्यवासिनी ચાર મહત્તરિક કુિમારિકાઓ વડે આજ્ઞપ્ત થયેલા તે આભિગિક દેવે હષ્ટ-તુષ્ટ થઈને ચાવતું બહુ જ વિનય સાથે તેમણે તેમની આજ્ઞા ન સ્વીકાર કરી લીધું. અહીં ચાવતું ५४थी 'हप्ट तुष्टचित्तानन्दिताः सुमनसः परमसौमनस्थिताः हर्पवशविसर्पद हृदया' मा पान सह थय। छे. 'पहिच्छित्ता खिप्पामेव चल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइ गोसीम्रचंदणकटाई साहरंति' माज्ञान वयनानी वीर.४२ पछी त मlalitars દેવ શુદ્ધ હિમવત પર્વની ઉપર ગયા અને ત્યાંથી ગશીર્ષ સરસ ચંદનના લાકડાએ લઈ मा०या. तएण ताओ मझिमरुयगवत्थब्याओ चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ सरगं करें ति' ત્યારબાદ તે ચાર મધ્ય સુચક વાસિની મહત્તરિક દિકુમારીઓએ અરિનને ઉત્પન્ન કરનાર श२४ नाम४ ४७४ विशेष तयार ४यु'. 'करिता अरणिं घडेति' तेन तयार ४ीन तना साथ
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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