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________________ ५३६ अम्बूलीपप्रतिसूत्र वर्षे 'तहचेव' तथैव तेनैव प्रकारेण 'हेरण्णवयंपि' हैरण्यवतमपि वर्ष 'माणियन्य' भणितव्य वक्तव्यम्', अथात्र हैमवतवर्षापेक्षया यो विशेपस्तं प्रदर्शयितुमाह-'णवरं नवरं केवलं 'जीवा' जीवा धनुः प्रत्यञ्चाकारप्रदेशः 'दाहिणेणं' दक्षिणेन-दक्षिणदिशि 'उत्तरेणं घj' उत्तरेणउत्तरदिशि धनु:-धनुष्पृष्ठं बोध्यम् 'अवसिह' अवसिष्टं-शेपं विष्कम्भायामादि चेव' तदेव हैमवतवर्षप्रकरणोक्तमेव 'इति' इति एतद्बोध्यम् ।। ___ अथ माल्यवत्पर्यायं वृत्तवैताढयपर्वत वर्णयितुमुपक्रते-'कहिणं भंते !' इत्यादि क्व खलु भदन्त ! 'हेरण्णवए वासे' हरण्यवते वर्षे 'मालवंतपरियाए' माल्यवत्पर्यायः 'णाम' नाम 'घट्टवेयद्धपव्वए' वृत्तवैताढ्यपर्वतः 'पण्णते ?' प्रज्ञप्तः, इति प्रश्नस्य भगवानुत्तरमाह'गोयमा !' गौतम ! 'सुवण्णकूलाए' सुवर्णकूलाया:-एतत्क्षेत्रवति पूर्वदियुगामि महानद्याः 'पञ्चत्थिमेणं' पश्चिमेन-पश्चिमदिशि 'रुप्पकूलाए' रूप्यकलायाः-एतत्क्षेत्रवर्तिपश्चिमदिग्गामि महानद्याः 'पुरस्थिमेणं' पौरस्त्येन पूर्वदिशि 'एत्थ' अत्र-अत्रान्तरे 'ण' खलु 'हेरण्णवयस्स' हैरण्यवतस्य 'वासस्स' वर्पस्य 'बहुमज्झदेसभाए' बहुमध्यदेशभागे-अत्यन्तमध्यनामके द्वीप में हैरण्यवत नामका क्षेत्र कहा गया है। एवं 'जह चेव हेमवयं तहचेच हेरण्णवयंपि' इस तरह जिस प्रकार की वक्तव्यता दक्षिण दिग्वर्ती हैमवत क्षेत्र की कही गई है उसी प्रकार की वक्तव्यता इस उत्तर दिश्वर्ती हरण्यवत क्षेत्र की जाननी चाहिये 'णवरं जीवा दाहिणेणं उत्तरेण धणु अवसिट नं चेवत्ति' परन्तु विशेपता यही है कि इसकी जीवा-धनुः प्रत्यञ्चाकार प्रदेश-दक्षिणदिशा में है और धनु:पृष्ठ इसका उत्तरदिशा में है बाकीका और सव विष्कम्भादि का कथन हैमवत् क्षेत्र के प्रकरण के अनुसार ही है 'कहि णं भंते ! हेरण्णवए घासे मालवंतपरिआए णामं वटवेयडपधए पण्णत्ते' हे भदन्त ! हैरण्य क्षेत्र में माल्यवत्पर्याय नामका वृत्तवैताढय पर्वत कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' सुवण्णकूलाए पच्चस्थिमेणं रूप्पकूलाए पुरथिमेणं एत्थ णं हेरण्णवयस्स चाहस्स बहुमज्झदेसभाए मालवंतपरियाए णानं वटवेयड्ढे भाव 2. 'एवं जहचेव हेमवयं तहचेव हेरण्णवयंपि' मा प्रभारी रे नी तव्यता દક્ષિણ દિશ્વર્તી હૈમવત ક્ષેત્રની કહેવામાં આવેલી છે તે પ્રકારની વક્તવ્યતા આ ઉત્તર हिवती २५यक्त क्षेत्रनी की . 'णवरं जीवा दाहिणेणं उत्तरेणं धणु अवसिटुं तं चेवत्ति' ५२'तु विशेषता मासी छे मेनी 41-धनुः प्रत्यय२ प्रदेश-दक्षियशामा છે અને ધનુપૃષ્ઠ એનું ઉત્તર દિશામાં છે. શેવ બધું વિધ્વંભાદિ વિષયક કથન હૈમવત क्षेत्रमा ४२ भु०४५ ॥ छ. 'कहि ण भंते ! हेरण्णवए-वासे मालवंतपरिआए णामं पट्टवेयड्ढ़ पव्वए पण्णत्ते' मान्त ! ६५य क्षेत्रमा भब्यक्त् पर्याय नामे वृत्तवैतादय पत ४या २५ मावशा छ १ सेना पसभा प्रभु ४ छे. 'गोयमा सुवण्णफूलाए पच्चत्थिमेणं रुप्पकूलाए पुरथिमेणं एत्थणं हेरण्णवयस्स बासस्स बहुमज्झदेसभाए मालवंतपरियाए णामं वट्टवेयड्ढे
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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