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________________ ४९५ जम्बूद्वीपप्रश्नतिन सिंहासनप्रयोजनम् अथ द्वितीयसिंहासनप्रयोजनमाह-'तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले' इत्यादितत्र-तयोरासनयो मध्ये खलु यत तदिति प्राग्वत्, औत्तराहम्-उत्तरभागवति 'सीहासणे' सिंहासन 'तत्थ' तत्र-तस्मिन् सिंहासने 'ण' खलु, बहुहि' बहुभिः 'भवण जाव' भवनपतिव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकवर्देवी मिश्च 'वप्पाइया' वनादिजाः उत्तरभागवर्तिवादिविजयाप्टकोत्पन्नाः 'तित्थयरा' तीर्थकरा:-जिनाः 'अहिसिच्चंति' अभिपिच्यन्ते, अथ चतुर्थी रक्तकपलशिलामिधा शिलां वर्णयितुमुपक्रमते-'कहिणं भंते ! पंडगवणे रक्तकंबलसिला' इत्यादि प्रश्नसूत्रं सुगमम्, उत्तरसूत्रं पाण्डुकस्बलशिलास्त्रमनुसृत्य व्याख्येयं नवरम् 'सब्बतवणिजमई गये हैं और जिसके प्रत्येक भागमें एक एक जिनेन्द्र की एक साथ उत्पत्ति होती है उसके दक्षिण भाग गत आठ पक्ष्मादि विजय है उत्तर भाग गत आठ वप्रादि विजय हैं इनमें दक्षिण भाग गत आठ पक्ष्मादि विजयों में उत्पन्न हुए तीर्थकर का जन्माभिषेक तो दक्षिणदिन भागवर्ती सिंहासन पर होता है और 'तत्य णं जे से उत्तरिल्ले सीहालणे तत्थणं यहहिं भवण जाव वपाइआ तित्थयरा अहि सिच्चंति' जो उत्तर दिग्वर्ती सिंहासन है उस पर ८ वादि विजयगत तीर्थकर का जन्मांभिषेक होता है यह जन्माभिषेक भवनपति आदि चतुर्विध निकाय के देव और देवियों द्वारा किया जाता है। 'कहिणं भंते ! पंडकत्रणे रत्तकवल सिला णामं सिला पण्णत्ता' हे भदन्त ! पंडकवन में रक्त कंवल शिला नामकी शिला कहां पर कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! मंदरचूलियाए उत्तरेणं पंडगवण उत्तरचरिमंते एत्थ पंडगवणे रत्तकंबलसिला नामं सिला पण्णत्ता' हे गौतम ! सन्दर चूलिका की उत्तरदिशा में तथा पंडकवन की उत्तर सीमा के अन्त में पंडकवन में रक्तकम्बलशिला नामकी शिला कही गई है દક્ષિણ અને ઉત્તર ભાગ રૂપ બે ભાગ થઈ ગયા છે અને જેના દરેક ભાગમાં એક-એક જિનેન્દ્રની એકી સાથે ઉત્પત્તિ થાય છે. તેના દક્ષિણ ભાગમાં આઠ પમાદિ વિજયો આવેલા છે. ઉત્તર ભાગમાં આઠ વપ્રાદિ વિજો આવેલા છે. એમાં દક્ષિણ ભાગ ગત આઠ પમાદિ 'વિજેમાં ઉત્પન્ન થયેલા તીર્થકરને જન્માભિષેક તે દક્ષિણ દિમ્ભાગવતી સિંહાસન ઉપર सेय छे. मने 'तस्थ ण जे से उत्तरिल्ले सीहासणे तत्य गं बहहिं भवण नाव वप्पाइआ तित्थयरा अहिसिच्चंति' २ तर ती सडासन छ तेनी ९५२ मा विन्य ગત તીર્થકરો જન્માભિષેક થાય છે. એ જન્માભિષેક ભવનપતિ વગેરે ચતુર્વિધ નિકાयना व अन वीमा ५४ ४२वाभा मा छे. 'कहिणं भंते । पंडगवणे रत्तकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता' ! ५७चनमा २५त ४ NिAL नामे शिया २५णे आवधी छ १ मेना पाममा प्रभु डे -'गोगमा ! मंदरचूलियाए उत्तरेणं पंडगवणउत्तरचरिमंवे पत्य णं पंडगवगे रत्तकंबल सिला ण म तिला पण्णता' गौतम! भर न्यूसिवाना ઉત્તર દિશામાં તેમજ પંડક વનની ઉત્તર સીમાના અંતમાં પડકવનમાં રફત કંબલ શિલા
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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