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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू.३५ महाविदेहस्य तृतीयविभागान्ततिविजयदिनि० ४१५ स्य चतुर्थविभागे शीताया औत्तराह मुखवनखण्डे विजयादीनिरूपमितुमाह-'उत्तरिल्ले वि एवमेव भाणिय३' इत्यादि-औत्तराहे-उत्तरदिग्भवे अपि च शीताया मुखवतखण्डे एक्येवउलप्रकारेणैव शीताया दाक्षिणात्यमुखवनखण्डवदेव विजयादि मणितत्यं वक्तव्यम्, एतदेव दृढयितुमाह-'जहा सीयाए' इति यथा येन प्रकारेण शीनाया महानद्या दाक्षिणात्यं मुखवन: खण्डं भणितं तथैवौत्तराहवनखण्डमपि भणितव्यमित्यर्थः, तत्र विजयादीभिर्दिशति-वप्पे विजए' इत्यादि सुगमम्, नवरम् 'उम्मिमालिणी' ऊर्मिमालिनी-ऊर्मीन्-तरङ्गान-मालते वक्षस्कार पर्वत हैं (कुमदे विजए, अजारायहाणी, अंतोवाहिणी महाणई) कुमुद नाम का विजय है इसमें अरजा द्रामकी राजधानी है और अन्तर्वाहिनी नाम की महानदी है (गलिणे विजए असोगा रायहाणी, सुहावहे वक्खारपच्चए) नलिन नामका विजय है, इसमें अशोका नाम की राजधानी है और सुखावह नाम का पक्षहकार पर्वल है (गलिणावई विजए, वीयसोगा रायहाणी दाहिणिल्ले सीओआसुहवणसंडे) नलिनाचती विजय है, इसमें पीतशोका नाम की सुरम्य राजधानी है और दक्षिण दिशा में रहा हुआ शीतोदा मुखवनषण्ड है (उतरिल्लेवि एमेव भाणिअन्वे जहा सीआए) दाक्षिणात्य शीतामुखवन के कथन अनुसार ही उत्तर दिग्भावि शीतोदा मुखवनप्रण्ड में भी ऐसा ही कथन कर लेना चाहिये जिस तरह से शीता के दक्षिणदिग्वी मुखवन में विजयादिकों का व्याख्यान किया गया है उसी तरह से शीता के उत्तरदिग्वर्ती मुखवन में भी विजयादिकों का कथन कर लेना चाहिये इसी घात को अब सूत्रकार स्पष्ट करते हैं (वप्पे विजए विजया रायहाणी, चंदे वक्खारपव्वए) शीता महानदी के उत्तरदिग्वर्ती मुखवनखण्ड में वम नाम का विजय है विजया नाम की राजधानी है और चन्द्र नाम का वक्षस्कारपर्वत है रायहाणी अंतोवाहिणी महाणई। मुह नाम विन्य छे. सभा २५२ नभ पानी छ भने सन्तान नाम भडानी छ. 'णलिणे विजए असोगा रायहाणी, सुहावहे वक्खारVશ્વા' નલિન નામે વિજય છે. એમાં અશોકા નામક રાજધાની છે અને સુખાવહ નામક ११४.२ पति छ. 'णलिणावई विजए, वीयसोगा रायहाणी दाहिणिल्ले सीओआमुहवण: સ નલિનાવતી વિજય છે એમાં વીતશેકા નામક રાજધાની છે અને દક્ષિણ દિશામાં मावेस शीतोहाभुम न छे. 'उतरिल्ले वि एमेव भाणिअव्वे जहा सीआएं' मियालय શિતા મુખવનના કથન પ્રમાણે જ ઉત્તર દિશભાવી શીદા મુખવનખંડમાં પણ એવું જ કથન સમજી લેવું જોઇએ. જેમ સીતાદાના દક્ષિણ દિશ્વની મુખવનમાં વિજ્યાદિ વિષે નિરૂપણ કરવામાં આવેલું છે તેમજ શીતાના ઉત્તરદિગ્વતી ગુખવનમાં પણ વિજ્યાદિકનું કથન કરી લેવું જોઈશે. એજ વાતને હવે સૂત્રકાર સ્પષ્ટ કરે छ. 'वप्पे विजए विजया रायहाणी, चंदे वक्खारपत्रए' शीता महानहीना उत्तर
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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