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________________ . . . . . . . . . . . अम्यूलीपप्राप्तिसूते. 'विजए' विजयः रियणसंचया रायहाणी' रत्नसञ्चया-रत्नमयानाम्नी राजधानी ८, इमा, राजधान्य: शीतामहानदी दक्षिणदिग्वतित्वेन विजयानामुत्तराईमध्यमखण्डेपु वोध्या, ... अथ ,विजयादीनां विष्कम्भादि समानत्वे दर्शितेऽपि कञ्चिदपि पार्श्वयोः परस्परं भेदो न स्फुटी भवितुमर्हे दिति संशयं निराकर्तुमाह-'एवं जह चेव' इत्यादि-एवम् पूर्वोक्तप्रकारेण, यथैव-येनैव प्रकारेण 'सीयाए' शीतायाः 'महाणईए' महानघाः 'उररं पास', उत्तरं पार्श्व प्राच्यम् 'सह चेव' तथैव-तेनैव प्रकारेण 'दक्खिणिल्लं दाक्षिणात्य-दक्षिणदिग्पतिः पार्श्वमपि 'भाणियन्वं' भणिराव्य-वक्तव्यं तच कीदृशम् इत्याह-'दाहिणिल्लसोयामुहवणाइ? दाक्षिणात्यशीतामुखवनादि-दाक्षिणात्यं शीतासुखदनमादिःप्रथमं यस्य तदाक्षिणात्यशीता-- मुखवनादि, ए होन यथा प्रथमविभागस्य कच्छविजय आदिरमिहितस्तथा द्वितीयविभागस्यादि। दाक्षिणात्यशीतामुख्यनमुक्तमिति तथा 'इमे वक्वारकूडा' इमे वक्षस्कार कूटा:-वक्षस्काराश्यते.. कूटा:-कूटानि सन्त्येपामिति कूटा:-कूटवन्तः अत्रार्श आदित्वादच प्रत्ययो बोध्या, वक्षस्कोरकूट: वक्षस्कारपर्वताः 'तं जहा' तद्यथा-'तिउढे त्रिकूटः १ 'वेसमणकूढे', वैश्रवण, विजय है रत्नसंचया नासली राजधानी है ये सब राजधानियां शीता महानदी को दक्षिण दिशा में हैं इस कारण विजयों के उत्तरार्ध मध्य खंडो में व्यवस्थित हैं। (एवं जहवेव लीयाए महाणईए उत्तरं पालं तहचेव दक्खिणिल्ल भाणिय); इस तरह जैसा सीता नदी का उत्तर दिग्पति पर्यभाग कहा गया है वैसा ही सीता नदी का यह दक्षिणं दिग्धती पश्चिम भाग कहा गया है, (दाहिणिल. सीयांमुह वाइ) जिस प्रकार से प्रथम विभाग की आदि में कच्छ विजय, कहा गया है इसी प्रकार से इस द्वितीय विभाग की आदि में दक्षिण दिग्वी, सीतानुख बन कहा गया है (हमे पक्खारकूडा) ये वक्षस्कार पर्वत हैं (तं जहा); जैसे-(तिउडे१ वेसमणक्रूडे २ अंजणे३ मायंजणे४, (गइउ तत्तजला मत्तजला उम्मतंजलाई, तप्तजला१ मन्तजलार और उन्मत्तजला३ ये नदियां है. . : : पति छे. 'मंगलावई विजए रगणसंचया रायहाणी भरावती य छ. रत्नस यया નામક રાજધાની છે. એ સર્વ રાજધાનીઓ'શીતા મહાનદીની દક્ષિણ દિશામાં છે એથી स यिोना उत्तराध' भय भी व्यस्थित है.' 'एवं जहचेत्र सीगए महाणा ई। उत्तरं पास तहचेव दक्खिणिल्लं भाणियव्वं' मा प्रभारी रम सीताना त्तर हिपता પાશ્વભાગ વિષે વર્ણન કરવામાં આવેલું છે, તેવું જ આ સીતા નદીના દક્ષિણે દિગ્વતી पश्चिम भाग ५ वामामावेश छ 'दाहिणिल्लसीयामुहवाई ३२ प्रभाएं प्रथम વિભાગના પ્રારંભમાં કચ્છ વિજય વિષે કહેવામાં આવેલું છે તે પ્રમાણે આ દ્વિતીય AHITHI HIRai क्षिपिता सीताभुमन वर्ष ५५ समान: "इमें' वक्खारकूडा' या १९४२ ताछे. 'तं जहा' रेम -'तिउडे १, वेसगणकूडे. २ अंजो.,३, मायजणे ४,' प्रिट, वैश्रम , म मने मायन'ट.'णइ 'उ त', त्तजला १, मत्तजला.., उम्मत्तजला ३, तप्तoren १,,भत्ता २, गन::Havels
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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