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________________ प्रकाशिका टीका चतुर्थवक्षस्कारः सू. २४ उत्तरकुरुनामादिनिरूपणम् २९५ तदर्थः, नामैकदेशे नाम्नोग्रहणात् तत्र सीतानदी देवीकूट मिति परमार्थः, च समुच्चये७, 'पुण्णभद्दे' पूर्ण भद्रं - पूर्णभद्र नामकस्य व्यन्तराधिपस्य कूटं पूर्णभद्रकूटम् ८, 'हरिस्सहे चेव बोद्धव्वे' हरिस्सहं चैत्र बोद्धव्यम्, हरिस्सह नाम्न उत्तरश्रेणिपतिविद्युत्कुमारेन्द्रस्य कूटं हरिस्सहकूटम् च समुच्चये, एव शब्दोऽवधारणे बोद्धव्यं ज्ञेयम्९, अथ नवकूटस्थानं निरूपयितुमाह'कहि णं भंते !' क्व खलु भदन्त । इत्यादि - प्रश्नसूत्रमुत्तानार्थकम् उत्तरसूत्रे - 'गोयमा !” गौतम ! 'मंदरस्स' मन्दरस्य - एतन्नामकस्य 'पव्वयस्स' पर्वतस्य 'उत्तरपुरत्थिमेणं' उत्तरपौरस्त्येन - उत्तरपूर्वदिगन्तराले ईशानकोणे 'मालवंतस्त्र' माल्यवतः 'कूडस्स' कूटस्य, 'दाहिणपच्चत्थिमेणं' दक्षिणपश्चिमेन निर्ऋतिकोणे 'एत्थ' अत्र '' खलु 'सिद्धाययणे' सिद्धयतनं 'कूडे कूटं 'पण्णत्तं' प्रज्ञतम् तत् किम्प्रमाणं कीदृशं चेत्यपेक्षायामाह - 'पंच जोयण'चेति' ऐसी छाया होती है अतः सीता कूट ऐसा उसका अर्थ होता है कारण कि नामैकदेश के ग्रहण से समग्र नामका ग्रहण हो जाता है इस पक्ष में सीतानदी देवीकूट ऐसा अर्थ हो जाता है ७ । 'पुण्णभद्दे' पूर्णभद्र, पूर्णभद्र नामका व्यन्तराधिपति देवका कूट पूर्णभद्र कूट है ८, 'हरिस्स हे 'चैवोद्धव्वै' हरिस्सह नामका उत्तर श्रेणि का अधिपति विद्युत्कुमारेन्द्र का कूट हरिस्सह कूट है ऐसा जानना ९, अब नव कूटों के स्थानों का निरूपण करते हुए सूत्रकार कहते हैं - 'कहिणं भंते ! मालवंते वक्खारपच्चए' हे भगवन् माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत में 'सिद्धाययण कूडे णामं कूडे पण्णत्ते' सिद्धायतन कूट नामका कूट कहाँ पर कहा है ? इसी प्रश्न के उत्तर में प्रभु श्री गौतम को कहते है 'गोयमा !' हे गौतम ! 'मंदरस्त' मंदर नाम के 'पव्वयस्स' पर्वत के 'उत्तरपुरत्थिमेणं' ईशान कोण में 'माल - वंतस्स' माल्यवान् 'कूडस्स' कूटका 'दाहिण पच्चत्थिमेणं' नैऋत्य कोण में 'एस्थ' यहां पर '' निश्चित 'सिद्धाययणे' सिद्धायतन 'कूडे' कूट 'पण्णत्तं' कहा गया है । चेति' खेती छाया थाय छे. तेथी सीता छूट मेव। तेन। अर्थ थाय छे, र है-नाभ દેશના ગ્રહણથી સંપૂર્ણ નામનુ ગ્રહણ થઈ જાય છે. એ પક્ષમાં સીતા નદી દેવી છૂટ सेवा मर्थ थर्ध लय हे ७, 'पुण्णभद्दे' पशु भद्र व्यन्तराधिपतिदेवना छूट युभद्र 'छूट छे. ८; 'हरिस्सहे चैव बोद्धव्वे' इरिस्सड नामना उत्तर श्रेीना अधियति विद्युत्कुभाરેન્દ્રના ફૂટ હરિસ્સહ ફૂટ છે. તેમ સમજવું ૯. वे नव टोना स्थानानु निश्या हरतां सूत्रार डे छे.- 'कहिणं भंते! मालवंत· वक्खारपव्वए' हे भगवन् भाझ्यवन्त वक्षस्४२ पर्वतभां 'सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते' સિદ્ધાયતન નામના ફૂટ કયાં આવેલા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે है - 'गोयमा !' हे गौतम! 'मंदरस्स' भंडर नामना 'पव्वयरस' पर्व'तना 'उत्तर पुरत्थिमेणं' , ईशान आशुभा 'मालवं तस्स' भाट्यवान् 'कूडस्स' छूटना 'दाहिणपन्चत्थिमेणं' नैऋत्यहिशाभां '' एत्थ' गडीयां 'ण' निश्वयथी 'सिद्धाययणे' सिद्धायतन 'कूडे' हूड ' पण्णत्तं' हे छे.
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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