SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ जम्यदीपप्रज्ञप्तिस्त्र पङ्क्तिः , तत्सूचकपाठश्चैवम्-'तेणं पासायचंतगा अण्णेहिं चरहिं तादधुच्चत्तप्पमागमित्तेहिं पासायवडेंसएहि सन्चओ यांना संररिक्यिता' पतन्छाया--पाठमात्रगम्या, व्याख्यातु-ते-प्रथमपरतिगताश्चत्वारः खलु प्रानादावासका प्रत्ये कर अन्यः-स्वभिन्नैः चतुर्भिः तदोच्चत्तप्रमाणगान-मूलप्रासादात्मेधनिष्कर भायात्रपम्पन्नैः-मृलप्रासादापेक्षया चतुर्भागप्रमाणैः प्रासादैः संपरिक्षिप्ताः, इनि, अत एव चतुर्दिश चत्वारश्रवार इति संकलनया सर्वे पोडश प्रासादाः, एपाणुञ्चन्नादिकं नु महान गाक्षादेवाद-'तेणं पासाय. वडेंसगा' ते खलु प्रासादावतंलका:-'सारेगाई' सातिरे काणि-अर्द्धकोगाधियानि : 'पद्धसोलसजोयणाई' आर्द्धपोडशयोजनानि-सा पश्चयोजनानि 'उदं उत्पनेणं' अर्ध्वमुच्चत्वेन, 'साइरेगाई' सातिरेकाणि-क्रोशचतुर्थीचाधिकानि 'अट्टपाइ' अष्टमानि-सार्द्धसप्त 'जोयणाई' योजनानि 'आयामविक्खंभेणं' आयाम विष्कम्भेण इति २, ३थ 'तइयपासायपंती' तृतीयप्रासादपङ्क्तिः -तत्सूचकपाठ एवम्-'ते णं पाप्सायबडे रागा अण्णेहिं चाहि की और ऊंचा कहा है। 'साइरेगा अछ अधिक अद्धमोला जोषणाई' आयामविश्वंभेणं' साडे पंद्रह योजन उसकी लंबाई चोडाई कही है। • अब दूसरी प्रासादपंक्ति सूचक पाठ इन प्रकार है-'तेणं पामायवडेंसया अण्णेहिं चउहिं तदधुच्चत्त पमाणमितहि पासायव.सपहिं सबओ समंता संपरिक्खित्ता' प्रथम पंक्ति में कहे गए चारों प्रासादावंतसक, दूसरे उससे आधि ऊंचाइवाले मूलप्रासाद से आधे उत्सेध आयामविष्भ वाले मल प्रासाद की अपेक्षा चतुर्भाग प्रमाणवाले चार प्रासादों से परिवेष्टिन कहे हैं, इस प्रकार चारों दिशाओंमें चार-चार काहने सं १६ सोलह प्रासाद हो जाते हैं। उनकी ऊंचाइ आदि मान सूत्रकार स्पयं कहते हैं-'तेणं पासायवडेंसना' वे प्रासादा. घतंसक 'सातिरेगाई' अर्ध फोस अधिक 'अद्धसोलार जोयणा' साडे पन्द्रह योजन 'उर्दू उच्चतेग' ऊंचा कहा है 'साइरेलाई पाव कोस अधिक 'अट्ठमाई जोयणाई आयामवि मेणं' लाडेसाहबोजनका इनका आयामविष्भकहा है। कोसं च उद्धं उच्चत्तेणं न मने रेट या 'साइरेगाई ४४ पधारे 'अद्धसोलसजोयणाई आयामविखंभेण सा ५४२ योनी तनी CS पापा छ. वे भी प्रासाहत सधी ५४ ४३ छ-'ते णं पासायवडे सगा अण्णेहिं चउहिं तद्धच्चत्तपमाणमित्तेहि पासायवंडंसरहिं सबओ समंता संपरिक्खित्ता' पडेसी પ્રાસાદ પંક્તિમાં કહેલ ચારે પ્રાસાદાવતં સક બીજા તેનાથી અદ્ધિ ઉંચાઈવાળા મૂલ પ્રાસાદંથી અર્ધા આયામ વિખંભ અને ઉસેધવાળા મૂલ પ્રાસાદના કરતાં ચતુર્ભાગ પ્રામાણુવાળા થાર પ્રાસાદેથી વીંટાયેલ છે. આ રીતે ચારે દિશાઓમાં ચાર ચાર કહેવાથી ૧૬ સાળ भासाही 25 लय छे. तनी या पोरे प्रभार सूत्रहार स्वय मताव छ.-'तेणं पासाय. पडेंसगा' से प्रासादात 'सातिरेगाई' मधे 3 मधिर 'अद्धसोलस जोयणोई' 31२. यौन 'उद्धं उच्चत्तण' या ४ा छ, 'साइरेगाई' ५8 मधि४ 'अटुमाई
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy