SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. २० उत्तरकुरूस्वरूपनिरूपणम् 'देवाण' देवयोः यमकाख्यपर्वताधिपत्योः सुरयोः 'सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं' षोडशानाम् आत्मरक्षकदेवप्साहस्रीणां-षोडशसहस्रसंख्यकात्मरक्षकदेवानाम् 'सोलसभहासणसाहस्सीओ' पोडश भद्रासनसाहस्थ्या-पोडशसहभद्रासनानि, 'पण्णत्ताओ' प्रज्ञप्ताः, अथानयोनामाय प्रश्नोत्तराभ्यां वर्णयितुमाह-'से केणतुणं भंते !' इत्यादि-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई' अथ-तदनन्तरं हे भदन्त ! केन अर्थेन कारणेन एवमुच्यते यत् 'जमगा पव्यया' यमकौ पर्वतौर ? भगवानुत्तरयति-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जमगपत्रए णं तत्थ२' यमक पर्वतयोः खलु तत्र तत्र-तस्मिंस्तस्मिन् 'देसे तर्हिर' देशे तत्र २ तस्य देशस्यावान्तरे तस्मि स्तस्मिन् प्रदेशे 'खुडूडाखुड्डियासु वावीसु जाव' क्षुद्राक्षुद्रिकासु वापीसु यावत्-यावत्पदेनपुष्करिणीषु, दीपिकासु, गुञ्जालिकासु, सर:पक्तिकासु, सरःसर पङ्क्तिकासु' इत्येषां पदानां संग्रहो बोध्या, तथा 'बिलपंतियासु' बिलपतिकासु, एषांपदानां व्याख्या राजप्रश्नीयसुत्रान्तर्गतचतुप्पष्टितमसूत्रस्य मत्कृतसुबोधिनी टीकातो वोध्या, 'बहवे' बहूनि-पुष्कलानि देवके 'सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं' सोलह हजार आत्मरक्षक देवोंके 'सोलस भद्दासणसाहस्सीओं' सोल हजार भद्रासन 'पण्णत्ताओ' कहे गए हैं ___ अब उनके नामकी अन्वर्थता प्रश्नोत्तर द्वारा दिखलाते हैं-'से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ' हे भगवन् किस कारणसे ऐसा कहा जाता है कि 'यमगपन्वया ! ये यमक नामके पर्वत है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं 'गोयमा ! हे गौतम ! 'जमगपव्वएसु णं तत्थ २' यमक पर्वत के उस उस 'देसे तहिं २' देश एवं प्रदेशमें 'खुड्डाखुड्डियासु वावीसु जाव' क्षुद्राक्षुद्र वाव में यावतू पुष्करिणीमें, दीर्घिकामें गुञ्जालिका, सरपंक्तियों में, सरः सरपंक्तियों में 'बिलपंतियासु' बिलपंक्तिमें (इन पदों की व्याख्या राजप्रश्नीय सूत्रान्तर्गत ६४ चोसठवें सूत्र की मेरे द्वारा की गई सुबोधिनी नाम की टीका से जानलेवें) 'बहवे अनेक-पुष्कल 'उप्पलाई जाव' उत्पल यावत् कुमुद, नलिन, सुभगसौगन्धिक पुंडरीक,-महा. यम नामना हेवना अर्थात यम: पतना स्वामी हेवना 'सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीण' सौ &01२ मात्मरक्ष४ हेवाना 'सोलस भद्दासणसाहसीओ' सो CM२ भद्रासना 'पण्णत्ताआ' ४डेपामां आवे छे. से प्रश्नोत्तर द्वारा तना नामनी सार्थता मतावे छे. 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई' है मगन् । २४थी म ४ामा मात्र छे. -'यमगपव्वया' मा यम नामना त छ१ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ.-'गोयमा गौतम ! 'जमगपचएस णं तत्थ तत्थ' यम नाम पतन त 'देसे तहिं तहि' हेश मने प्रशभा 'खुड्डाखुड़ीयासु बावीसु जाव' नानी नानी पावमा यावत् १०४२यामा, अमामां, सुति मामा, स२५तयोभी, सर: सर ५तियोमा. 'विलपंतियासु' मिसतियोमा म તમામ પદેને અર્થે રાજકશ્રીય સૂત્રના ૬૪ ચોસઠમાં સૂત્રની મેં કરેલ સુધિની टीमामा मायामां मावस छ । लासुमे त्यांची सभ 'बहुवे' भने, 'उप्पलाई
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy