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________________ ૨૮ટે __ जम्बूद्वीपप्रबप्तिसूत्र यमकसंस्थानसंस्थितौ-यमकौ-युग्मजातौ भ्रातरौ तयोर्यत् संस्थानम्-आकारविशेषस्तेन संस्थितौ-परस्परं सदृशसंस्थानौ, यद्वा-यमका:-पक्षिविशेपास्तत्संस्थिती, संस्थानं चानयो मुलादारभ्य शिखरं यावत् ऊर्वीकृत गोपुच्छवत्क्रमिक हासवत्प्रमाणत्वेन बोध्यम् , तथा 'सन्चकणगामया' सर्वकनकमयो-सर्वात्मना स्वर्णमयौ 'अच्छा सण्हा' अच्छी श्लक्ष्णौ 'पत्तेयंर प्रत्येकम् २-एकैक एकैकः इति द्वौ पृथक स्थिती 'पउमवरवेइयापरिक्खित्ता' पद्मवरवेदिका परिक्षिप्तौ--पदमवरवेदिका परिवेष्टितौ 'पत्तेयं२' प्रत्येकंर 'वणसंडपरिक्खित्ता' वनपण्डपरि. क्षिप्तौ-वनपण्डपरिवेष्टितौ, अत्रैवानन्तरोक्तयोः पद्मवरवेदिका-वनपण्डयोः प्रमाणाधाह'ताओ णं' इत्यादि-'ताओ णं' ताः प्रागुक्ताः खलु 'पउमवरवेइयाओ' पद्मवरवेदिकाः 'दो गाउयाई द्वे गव्य ते-चतुराक्रोशान 'उद्धं उच्चत्तेणं' उर्ध्वमुच्चत्वेन 'पंच धणुसयाई' पञ्चधनुशतानि-पञ्चशतधपि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण विस्तारेण, 'वेइयावणसंडवण्णओ' वेदिका नसे संस्थित अर्थात् परस्परमें समान संस्थान वाले ये यमक पर्वत है अथवा यमकनामके पक्षिविशेष के आकार के जैसा आकार वाले ये यमक पर्वत है । अर्थात् इसका संस्थान मूलसे शिखर पर्यन्त ऊंचे उठाए गए गाय के पुच्छ के आकार जैसे आकार वाले अर्थात् क्रमिक तनु होते जानेवाले प्रमाण वाला ये पर्वत है। ये यमक पर्वत 'सन्च कणगामया' सर्वात्मना सुवर्णमय है 'अच्छा सण्हा' अच्छ एवं श्लक्ष्ण है । 'पत्तय २' प्रत्येक पृथक् पृथक रहे हुए हैं अर्थात् दोनों अलग अलग स्थित है। 'पउमवरवेझ्या परिक्खित्ता' पद्मवर वेदिका से परिवेष्टित है 'पत्तेयं २ वणसंडपरिक्खित्ता' वनषण्ड से प्रत्येक परिवेष्टित है। ___ अब पन्नवरवेदिका एवं वनषण्ड का प्रमाण कहते हैं-(ताओ णं) इत्यादि (ताओ णं) पहले कही हुई 'पउमघरवेझ्याओ' पद्मवरवेदिका (दो गाउयाई) दो गव्यूत अर्थात् चार कोस की 'उद्धं उच्चत्तेज' उपर की और ऊंची है 'पंच धणु'जमगसंठाणसंठिया' यम सस्थानी संस्थित अर्थात् मन्योन्य समान संस्थानवाणा આ યમક પર્વત છે. અથવા યમક નામધારી પક્ષિ વિશેષના આકાર જેવા આકારવાળા આ યમક પર્વત છે. અર્થાત્ તેમનું સંસ્થાના મૂળથી શિખર સુધી ઉંચુ કરવામાં આવેલ ગાયના પૂંછડાના આકાર જેવા આકારવાળા એટલે કે ક્રમકમથી પાતળા પડતા જતા પ્રમાણ वाणा मा यम४ पति छ. मा यम ५'त 'सव्व कणगामया' सर्वात्मना सानाना छे. 'अच्छा सण्हा' म२७ भने समय छे. "पत्तेयं पतेथे प्रत्ये४ मा म २सा छ. 'पउमवरवेइया परिक्खित्ता' ५५पर arel पीटाये। 2. 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिविखत्ता' ६२४ पनी वाटायेा छ. 6 ५२ । मन मनु' प्रभा मतावामा भाचे छ.-'ताओण' त्याla 'ताओणं' पडला ४ामा मात 'पउमवरवेइयाओ' ५१२वा 'दो गाउयाई' में आव्यूत अर्थात् यार IG "उद्धं उच्चत्तणं' ५२नी त२६ श्री छे. 'पंच, धणुसयाइ'
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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