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________________ '२०० आवश्यक सूत्रस्य निक्खेवणास मिईए' भाण्डमात्रे = उपकरणमात्रे, आदान निक्षेपण = ग्रहणस्थापन तद्विषया समितिस्तया । 'उच्चारपासनणखेलजलसिंघाणपरिठावणियासमि ईए' उच्चार: पुरीप, मसाण = मूत्र, खेल: लेप्मा, जल्लः = देहमल, सिंघाण = नासामल, तेपा परिष्ठापनिका = व्युत्सर्जन तद्विपया समितिस्तया । 'पडिकमामि' प्रतिक्रामामि, 'छहिं' पभिः, 'जीवनिकाएद्दि' जीवाना निकाया: =राशयः जीवनिकाया:= पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पवित्रसस्वरूपास्तैस्तद्वारेत्यर्थः ' यो मया ऽतिचारः कृत ' इत्यादि - सम्बन्धः माग्वदेव । ' पडिक मामि' प्रतिक्रामामि, 'छहिं' पभिः, 'लेस्साहि' लिश्यते श्लिष्यते = सम्मध्यते आत्मा कर्मभिः (४) ' आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति - वस्त्र- पात्र आदि उपकरणों का यत्नापूर्वक लेना और रखना । तथा (५) 'उच्चार - प्रस्रवण- खेल - जल-सिद्धाण-पारिष्ठापनिकासमिति' - उच्चार आदि का यत्नापूर्वक दश बोल वर्ज (टाल) के परिष्ठापन करना, इनसे एव पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति और सरूप छह जीव निकायों से, तथा कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल, इन छह लेश्याओं के सम्बन्ध से जो अतिचार किया गया हो तो उससे मे निवृत्त होता है ' । अब लेश्या का स्वरूप कहते हैं- जिसके द्वारा आत्मा कर्मों से लेपायमान हो उसको अर्थात् कषायों के उदय से प्राप्त शक्तिविशेषवाली योगप्रवृत्ति (४) 'माहान - लार्ड - भात्र- निक्षेपणा - समिति' - वस्त्र, પાત્ર આદિ ઉપકર @ાના યત્નાપૂર્વક લેવુ મૂકવુ तथा (4) ‘सुश्यार-अस्त्रवण्य- मेस - दस - सिंघाणु - पारिष्ठापनिा-समिति' - अभ्यार આદિના યત્ના પૂર્ણાંક દશ-બાલ ત્યજીને પરિષ્ઠાપન કરવુ એનાથી એવ પૃથ્વી, પાણી, તેજ વાયુ, વનસ્પતિ અને ત્રસરૂપ છ लव निष्प्रयोथी, तथा पुण्य, नीस, કાપાત, તેજ, પદ્મ અને શુકલ આ છ લેશ્યાઓના સમ્બન્ધથી જે કાઈ અતિચાર લાગ્યા હોય તેા તેમાથી હુ નિવૃત્ત થાઉં છુ, હવે લેસ્યાનું સ્વરૂપ કહે છે જેના દ્વારા આત્મા મેાંથી લેપાયમાન થાય તેને અર્થાત, કષાયેાના ઉદયથી
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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