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________________ मुनितोपणी टीका, प्रतिक्रमणाध्ययनम्-४ तथादर्शनात् , क्रमुधातुश्च गमनार्थकस्तेन पति मोक्षाभिमुख क्रम्यते-गम्यतेऽनेनेति, अथवा प्रतिशब्दस्य भृशार्थकत्वाच्छुभयोगेषु वार वारं क्रमण प्रतिक्रमणम् । तत्र (पतिक्रमणे) ध्यानविपयीकृतम्-'आगमे तिविहे' इति पट्टिकाया आरभ्य 'इच्छामि ठामि' इति पर्यन्त सर्व प्रस्फुट वनव्य, तदनु 'तिक्खुत्तो' इत्यस्य पाठेन सविधि वन्दना विधाय श्रमणभूत्रस्याज्ञा ग्रहीतन्या, ततो नमस्कारमन्त्रोच्चारणपूर्वक 'करेमि भते' इत्युचार्य माङ्गलिकमुच्चारणीयमिति । सम्प्रति माङ्गलिकसत्रमाह-'त्तारि' इत्यादि । ॥ मूलम् ॥ चत्तारि मंगल-अरिहता मगल, सिद्धा मगल, साहू मगल, केवलिपन्नत्तो धम्मो मगल । चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साह लोगुत्तमा, केवलिपन्नत्तो धम्मोलोयुत्तमो । चत्तारिसरण पवजामि,-अरिहते सरण पवजामि, सिद्धे सरण पवजामि, साहू सरण पवजामि, केवलिपण्णत्त धम्म सरण पवजामि ॥ सू० १॥ योगों में चार चार जो सक्रमण (जाना) उसको प्रतिक्रमण कहते हैं । इसमें 'आगमे तिविहे' से लेकर 'इच्छामि ठामि' तक व्यानमें चिन्तित सब पाटियों (पाठों) को प्रगट रूपसे योले, बादमें 'तिक्खुत्तो' के पाठसे विधिपूर्वक वन्दना करके श्रमणसूत्र की आज्ञा लेवें तय नमस्कार मन्त्र के उच्चारणपूर्वक 'करेमि मते' की पाटी पोल कर भागलिक बोले, ऐसा नियम है, इस कारण यहा मागलिक कहते हैं-'चत्तारि' इत्यादि। सभy (v) २ प्रतिभा ४ छ, मेमा "मागमे तिविहे" थी ने 'इच्छामि अमि' सुधी याना वितित मी पाटिमा (418)a २ ३१ से ५७. 'तिक्खुत्तो' ना ५४२ विधि- पना न भएर सूत्रनी माझा सा नमा२ मनना य२२१ ५६४ (करेमि भते) नी पारी मान માગલિક બલવું એ નિયમ છે એટલા માટે અાિ માગલિક કહે છે 'चनारि' इत्यादि
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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