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________________ ११४ आवश्यक सूत्रस्य पाचवी समिति के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसीय सम्वन्धि तस्य मिच्छामि दुक्कड ॥ ५ ॥ मनगुप्ति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, वचन आरभ, सारभ, समारंभ, विषय, कषाय के विषय खोटो मन प्रवर्ताच्यो होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्य मिच्छामि दुक्उ । १ । वचनगुप्ति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, वचन आरभ, सारभ, समारंभ, राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा, भत्तकथा इन चार कथा में से कोई कथा की रोय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुक्कड । २ । कायागुति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, काया आरंभ, सारभ, समारंभ, विना पूज्या अजयणापणे असावधानपणे हायपग पसारचा होय, सकोच्या होय, विना पूज्या मीतादिक को ओटींगणो (सहारो) लीधो होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुवड | ३ | पृथ्वीकाय में मिट्टी, मरडो, खडी, गेरु, हिंगलू, हडताल, हडमचि, लूग, भोडल, पत्थर इत्यादि पृथ्वीकाय के जीवों की विराधना की होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुक्कड ११ अकाय मे ठार को पाणी, ओस को पाणी, हीम को पाणी, घडा को पाणी, तलाव को पाणी, निवाण को पाणी, सकालको पाणी, मिश्र पाणी, वर्षाद को पाणी इत्यादि अप्पकाय के जीवों की विराधना की होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुक्कड । २ । ते काय मे खीरा, अगीरा, भोभल, भडमाल, झाल, टूटती झाल, बिजली, उल्कापात इत्यादि ते काम के जीवों की विराधना की होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुवड | ३ | वाकाय में उक्कलियावाय, मडलियावाय, घणवाय, घणगूजवाय, तणवाय, शुद्धवाय, सपटवाय, वींजणे करी, तालिकरी,
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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