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________________ आवश्यकत्रस्य -- -- - - - गमः मूत्रार्थद्वयरूप आगमः। तत्र सूत्रपद व्याचष्टे-'मुत्त' इति प्राकृतशेल्या सूत्र मूक्त मुप्तमिति पदत्रयस्य 'मुत्त' इति भवति, तस्मात् सूज्यन्ते-समृधन्ते वहयोऽर्था यस्मिन्निति, सूत्रयति गुम्फयति विविधानर्थान् सक्षेपेणेति, सूत्रयतिसूचयत्यल्पाक्षरै व्यपर्यायनयादिस्वरूप भृशमर्थमिति, दोपराहिन्येन 'मुनापतिपादितमिति, अर्थज्ञानमन्तरेण सर्वे पदार्थाः समुप्तवस्मतिभान्स्यत्रेति वार्थः। यद्वा सूत्र-तन्तुस्तत्सादृश्याद्गोण्या लक्षणया सूत्रम् , यथा तन्ती बहूनि वस्तून्य कत्र सनथ्यन्ते तथेहापि बहवोऽर्था इति । आहोस्वित् यथा तन्त्वपरपर्याय मूत्रमय सुचतुरैः पटकरैः पटरूपता नीत सद् गोप्याङ्गान्यात्य शैत्यादिभ्यो रक्षन् धार__ कस्य शोभा मङ्गल च तनोति तथेदमपि मूत्रमाचार्या दिव्याख्यात सत् पटस्था जिसमें सक्षेप रूपसे बहुत अर्थों का सग्रह किया जाय, अथवा जो दोपरहित कहा हुआ हो, या जैसे सोये हुए ७२ कला के ज्ञाता पुरुष को जगाने पर कला का भेद-प्रभेद का ज्ञान होता है उसी प्रकार अर्थ द्वारा सर्वतत्व जिससे जाने जाय अथवा जस सूत्र (सूत) मे मणि मोती आदि तरह तरह के पदार्थ गूंथे हुए रहते हैं, या जैसे सूत बहुत से इकट्ठे किये जाकर चतुर पुरुषों स तरह के (अपनी इच्छा के अनुसार) कपडे बनाये जाते हैं और जो गुप्त अगों को ढाकते हैं, सर्दी गर्मी से बचाते है तथा धारण करने वाले की शोभा को बढाते हैं, वैसे ही जो जीवादि नाना पदार्थों के स्वरूप से गुम्फित (ग्रथित) तथा आचार्य आदि से * જેમાં સક્ષેપ રૂપે ઘણુ અને સંગ્રહ કરવામાં આવે અથવા જે દોષ રહિત કહેલ હેય, અથવા જેમ સુતેલ ૭૨ કળાના જ્ઞાતા પુરૂષને જગાડયા પછી કળાના ભેદ પ્રભેદ જાણે શકાય તેવી રીતે અર્થ દ્વારા સઘળા તત્વ જેનાથી જાણી શકાય, અથવા જેમ દેરામાં મણિમેતી વિગેરે ભાતભાતના પદાર્થ ગુથાએલ રહે છે અથવા જેવી રીતે ઘણું સૂતરને ભેગા કરીને ડાહ્યા માણસે પિતાની ઈચ્છારૂપ ભાતભાતનું કાપડ બનાવે છે તે કાપડ ગુમ અગેને ઢાકે છે, સદી અને તાપથી બચાવે છે અને પહેરનારની सामान पधारे छे तेवी शतवाहनाना पार्थाना २१३५थी गुम्फित (अथित) १- 'मुष्ठत' मुक्तमिति छायापक्षे । २- 'सुप्त'-मिति छायापक्षे ।
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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