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________________ - मुनितोपणी टीका ५५ श्रुतसम्पञ्चतुर्दा यथा-(१) बहुश्रुतत्व, (२) परिचितमूत्रत्व, (३) परिज्ञातोत्सर्गापवादत्वम् (४) उदात्तानुदात्तायनुसन्धानपूर्वकयथोचितवर्णोच्चारयितत्व चेति । तत्र बहुश्रुतत्व-यदा यावन्ति भूत्राणि तदा तावत्सर्वपरिज्ञातृत्वम् , परिचितमूत्रत्व स्वनामादिवत्कदाप्यविस्मृतमूत्रत्वम् । शरीरसम्पञ्चतुर्दा यथा(१) समचतुरस्रसस्थानत्वम् , (२) सम्पूर्णागोपाङ्गत्वम् , (३) प्रतिपूर्णेन्द्रियत्वम् , (४) स्थिरसहनत्व चेति । वचनसम्पञ्चतुर्दा यथा-(१) आदेयवचनत्व, (२) मधुरवचनत्व, (३) म-यस्थवचनत्व, (४) स्फुटवचनत्व चेति । वाचनासम्पञ्चतुर्दा यथा-(१) पानपात्रविवेचकत्व, (२) कृतपूर्वसूत्रार्थ [२] श्रुतसम्पदा के चार भेद हैं- (१) जिस समय जितने सूत्र हों उन सब का ज्ञान रखना । (२) अपने नामकी तरह सूत्रों को कभी न भूलना । (३) उत्सर्ग अपवादका ज्ञान रखना । (४) उदात्त अनुदात्त आदि स्वरों के अनुसन्धान पूर्वक वर्णों का शुद्ध उच्चारण करना। [3] शरीरसम्पदा के चार भेद- (१) समचोरस सस्थान का होना, (२) अगउपागों से अविकल होना, (३) सर इन्द्रियों से परिपूर्ण होना, (8) दृढ सहननका होना। [४] वचनसम्पदा के चार भेद- (१) आदेय वचन होना, (२) मधुर वचन होना, (३) मध्यस्थ वचन होना, (४) स्फुट वचन होना। [५] वाचना सम्पदा के चार भेद- (१) शिप्यों में पात्र શ્રતસમ્પદાના ચાર ભેદ છે (૧) જે સમયે જેટલા સૂત્ર હોય તે સર્વનું જ્ઞાન રાખવું, (૨) પિતાના નામની જેમ સૂત્રેને કદી પણ નહિ ભૂલવા (૩) ઉત્સર્ગ–અપવાદનું જ્ઞાન રાખવુ, (૪) ઉદાત્ત-અનુદાત્ત આદિ સ્વરેના અનુસંધાન પૂર્વક વર્ણોને શુદ્ધ ઉચાર કરે (૩) શરીરસર્પદાના ચાર ભેદ– (૧) સમોન્સ સસ્થાનનું હોવું (२) २५-पागोथी अविश्व यवु, (3) सप दियाथी परिपूर्ण पY (४) ६८ સહનનનું કહેવું (४) क्यानसहाना या२ - (१) माय पयन (२) मधु२ पयन (3) मध्यस्य चयन, (४) शुट पयन (૫) વાચનાસભ્યદાને ચાર ભેદ– (૧) શિમાં પા-કુપાત્રપણને
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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