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________________ सुबोधिनी टीका सू. १०० सूभिदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् टीका-'तस्स ण' इत्यादि---- . तस्य-पूर्वोक्तस्य खलु प्रदेशिनो राज्ञः सूर्यकान्ता नाम. देवी-राज्ञी आसीत् । सा सूर्यकान्ता देवी सुकुमालपाणिपादा-सुकुमालं सातिशयकोमल पाणिपाद' हस्तौ पादौ च यस्याः सा तथाभूताऽऽसीत् । सूर्यकान्तायाः सर्व वर्णन धारिणीवद् बोध्यम् । एतदेव सूचयितुमाह-धारिणीवण्णओ' इति औपपातिकमत्रोक्तधारिणीबद् बोध्यम् । ला मूर्यकान्ता देवी प्रदेशिना राज्ञा साद सह अनुरद्धा-सातिशयम मयुत्ता अविरक्ताम्मातिकूल्य गतेऽपि पत्यौ स्वयं सदा प्रसन्नवदना सती इष्यन् अभिलषितान, शब्दान् रूपाणि यावगन्धान् रसान् स्पर्शाश्चेति पञ्चविधान् मनुष्यान्-मनुष्यसम्बन्धिनः कामभोगान् प्रत्यनुभवन्ती-उपभुजाना विहरति ।मु० १००॥ ____ मुलम्-तस्स णं पएसिस्स रण्णो जेट्टे पुत्त सूरियकंताए देवीए अत्तए सूरियकंते नाम कुमारे होत्था, सुकुमालपाणिपाए जाव पडि. रुो। में णं सूरियकंते कुमारे जुवराया वि होत्था, पएसिस्स रन्नो धारिणीवष्णओ) इसके हाथ पैर आदि अवयव बडे ही सुकुमार थे. इसका पूर्ण वर्णन धारिणी रानी के जैसा ही है. धारिणी का वर्णन औषपातिक सूत्र में दिया गया है। (पएसिणा रन्नो सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इट्टी सद्दी रूवे जाब विहरइ) प्रदेशी राजा के साथ यह सातिशय प्रेम युक्त बने होकर अभिलषित मनुष्य संबंधि कामभोगों को भोगती थी, यदि राजा कभी प्रतिकूल भी हो जाता तो उस समय यह उससे प्रतिकूल नहीं बनती, प्रत्युत्त सदा प्रसन्नवदन ही रहती, वहां 'शब्दरूप से रूपं गंध, रस और स्पर्श ये पांच प्रकार के कामभोग गृहीत हुए हैं। . टीकार्थ स्पष्ट है ॥ सू० १००॥ તેના હાથપગ વગેરે અવય અતીવ સુકુમાર હતા. રાણુનું વર્ણન ધારિણે રાણી २४ छ. मोपपाति सूत्रमा धारिणीनु वर्णन ४२वाभा माव्यु छ. (पएसिणा रनो सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इ स रुवे जाब विहरह) धेशी शंतनी સાથે તે સાતિશય પ્રેમયુકત વ્યયવહાર રાખીને અભિલષિત મનુષ્ય સંબંધિ કામ ભેગે જોગવતી હતી. જે કદાચ રાજા કોઈ દિવસ પ્રતિકૂલ થઈ જતો તે તે તેની સામે અનુકૂલ થઈને જ રહેતી હતી. તે સદા પ્રસન્ન વદન જ રહેતી હતી. અહીં "१७४३५ यी ३५, ५, २६ मने २५ मे पाय प्रा२ना मलागानु अडथयु छ. 'ટાકર્થ સ્પષ્ટ છે. ૧૦ના
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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