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________________ सुबोधिनी टीका सु. १७४ सूर्याभदेवस्य आगामिभववर्णनम् ४२५ मूलम्-तए णं दृढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहिं अन्नभोएहि जाव सयणभोएहिं णो सजिहिइ णो गिज्झिहिइ णो मुच्छिहिइ णो अझोवजिहिइ । से जहा णामए पउमुप्पलेइ वा पउमेइ वा जाव सयसहस्तपत्तेइ वा पंके जाए जले संवुड्ढे गोलिप्पइ पंकरएणं, णोवलिप्पइ जलरएणं, एवासेव दपइण्णे वि दारए कामेहिं जाए भोगेहि संवुड्ढे णोवलिप्पिहिइ कामरएणं, णोवलिप्पिहिइ भोगरएणं, णोवलिप्पिहिइ मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणेणं । से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुझिहिइ, मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगोरियं पव्वइस्लइ । से णं अणगारे भविस्सइ-ईरियो समिए जाव सुहबहुयासणो इव तेयसो जलंते । तस्स णं भगवओ अणुत्तरेणं णाणेणं, एवं दंसणेणं चरित्तेणं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं महवेणं लाघदेणं खतीए गुत्तीए अणुत्तरेणं सव्वसंजमसुचरिय तवफलणिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स अणंते अणुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे निरावरणे णिव्वाघाए, केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्जिहिए। तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ, सदेवमणुयासुरस्त लोगस्स परियायं जाणिहिइ, तं जहा-आगई गई ठिइ चवणं उववायं तक कड मणोमाणसियं खइयं भुत्तं पडिसेविय आवीकम्स रहोकम्म अरहा अरहस्सभागी तं तं कालं मणवयकायजोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ । ॥ सू० १७४ ॥
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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