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________________ ३८६ राजप्रश्नीयसूत्रे गमिष्यति ? कुत्रोत्पत्स्यते ? महाविदह वर्षे यानि इमानि कुलानि भवति. तद्यथा-आढयानि दीप्तानि विपुलानि विस्तीर्णविपुलभवनश नासनयानवाहनानि बहुधन-बहुजातरूपरजतानि आयोगश्योगसं :युक्तानि छिर्दितमचुभक्तपानानि बहुदासीदास गोमहिपावेलकप्रभूतानि बहुजनस्य अपरिभृतानि, नत्र अन्य मस्मिन कुले पुत्रनया यास्यति ॥ सू० १६६ ॥ भक्षय, एवं-थितिक्षय के वाद अनन्तर देव शरीर को छोडकर यहां जावे गा-३ कहां उत्पन्न होवेगा-३ उत्तर-"गोयमा-? महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुल णि भवत, त जहा-अाइ दित्ताइ विउलाहिं वित्थिन्नविउलभषणसयणासणजाणवाहगाई बहुधाण बहुजावरूदययाइ'-" है गौतरा-? महाधिदेह क्षेत्र में जो ये कुल हैं, कि जो-आन है-दीप्त हैं-विपुल है, विस्तीर्ण पुल भवनवाले है विस्तीर्ण विपुलशयनासन ाले हैं वितीर्ण विपुल यानवाहनवाले हैं, बहुधनमाले है बहुतर बारूप ले है बहुग्जतवाले है 'अ.ओगपओगसंपउत्ताइ विच्छड्डियपउर मत्त बहु दासीदास गो महिस गवेलगप्पभूया', बहुजणस्स अपरिभृयाड -'' आग प्रयोग जिन से व्यापून हत रहते हैं, दीनजनों के लिये यहां से प्रचुः मात्रा में भक्तपान प्राप्त होता है, जिन के पास दासी-दास अनेक संद.1 में से करने के लिये उपस्थित रहता है, प्रचुर मात्रा में जहां गो-महिप, एवं-अजा मेप अदि पशु कायम बने रहते हैं, तथा-कोईभी जन जिनका तिरस्कार नहीं कर सकता है, "तत्थ अन्नयर सि कुलम्मि पुत्तताए पच्चायाइरसई-" उन कुलों में से किसी एक कुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा. ॥ અને રિતિક્ષય પછી દેવ શરીરને ત્યજીને કયાં જશે? કયાં ઉત્પન્ન થશે ? ઉત્તર"गोयमा ! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति, तं जहा-अाइं दित्ताई विउलाहिं वित्थिन्न विउलसवणसयणासणजाणवाहणाई बहुधण बहुजायरूव श्ययाई' હે ગૌતમ ! મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં જે કુલે છે-જે આઢય છે, દીત છે, વિપુલ છે, વિસ્તીર્ણ ભવનોવાળા છે, વિસ્તીર્ણ વિપુલ શયનાસનવાળાઓ છે, વિરતીર્ણ વિપુલ યાન-વાહન વાળાઓ છે, બહુધન સંપન્ન છે, બહુતર જાતરૂપવાળા છે, બહુરજતવાળા છે. "आओगपओगसंपउनाइ विछड्डियपउर भत्तपाणाई, बहुदासीदासगो महिसगवेलाप्पभूयाइ, बहुजणस्स अपरि भूयाइ" भनाथी माया प्रयोग વ્યાવૃત થતો રહે છે, દીનજને માટે જયાંથી પ્રચુર માત્રામાં ભકત-પાન પ્રાપ્ત થતાં રહે છે, જેમની પાસે દાસીદાસ ઘણી સંખ્યામાં સેવા-ચાકરી કરવા ઉપસ્થિત રહે છે, જ્યાં પુષ્કળ માત્રામાં ગાય મહિષ અને અન્ય, મેષ વગેરે પશુઓ વિદ્યમાન રહે छ, तम is पY भाणुस भनी मना२ ४१ शत! नथी. "तत्थ अन्नयरंसि कुलम्मि पुत्तत्ताए पच्चायाइरसई" ते समांथी ते ५ यसमा पुत्र३ उत्पन्न थ.
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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