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________________ सुबोधिनी टीका स. १६४ सूधाम देवस्य पूर्वभ जीन्प्रदेशिराजर्णनम् शिर आवर्त मस्तके अञ्जलिं कृत्वा एवमवादीत्-नमोऽ'तु खलु अहँद्भयः यावत् संशप्तेभ्यः नमोऽस्तु खलु केशिने कुमारश्रमणाय मम धर्माऽऽचार्याय धर्मोपदेशयाय, वन्दे खलु भगवन्तं तत्रगतम् इहगतः, पश्यतु मां भगवान् तत्रगतः इह गतम्' इति कृत्वा वन्दते नमस्यनि, पू'मपि खलु मया केशिनः कुमारश्रमण. यान्तिके स्थूलपाणानिपातः पत्याख्यान: यावत् स्थूलपरिग्रहः प्रत्याख्यातः, की-“दव्मसंथारगं संथरेइ-" और फिर दर्भ का संथारा विछाया ‘दब्भसंथारगं दुरूहइ-" उसे विछा कर वह उस पर वेठ गया. "पुर-. स्थाभिमुहे संपलियंकनिसन्दे-" वहां आरूढ होर वह पूर्व दिशा की ओर मुह करके पर्यङ्कासन से बैठ गया. "करयलपरिग्गहिय सिरसावत्तं मत्थए अजलि कटु एवं वासी-'' और दोनों हाथे की अंजली बनाका एवं-उसे मस्तक पर घुमाकर इस प्रकार से कहने लगा. “नमो थुणं अरहताणं जाव संपत्ताणं; नमो थुणं केसिस्स कुमारसमणस्स मम धम्मायरि स्स धम्मोवदेसगस्स-" अन्ति भगवन्तों के लिये नमरार हो, मेरे धर्मोपदेशक धर्माचार्य केशीकुमार श्रमण के लिये नमस्कार हो, “वंदामि णं भगवंतं त थ य इहगए-" यहां रहा हुवा मैं वहां पर रहे हुवे भगवान् को वन्दना करता हूं, "-पासउ मे भगवं तत्थगए इहगय त्ति कटु वंदइ. नमसइ-" वहां पर रहे हुवे वे भगवान् यहां रहे हुवे मुझे देखें-इस प्रकार कह कर उस प्रदेशी राजाने उनकी वन्दना की नमस्कार किया. 'पुबि पि णं मए केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए थूलपाणाइवाए पच्चरखाए, जाव थूलपरिग्गहे पच्चवखाए " पहलेभी मैंने केशी प्रतिवेजना ४३. "दभमंथा गं संथरेइ' मने पछी मनु मासन त्या पाथ". "दभसंथारंग दलहइ' तेने पाथरीने ते तना ५२ मे थ६ गयो, “पुरत्थाभिमुहे पलियानिस ने" त्या मा३८ थने ते पूर्व हिशा त२५ भुप शन ५ सनथ: गेसी गयी. कर लपरिग्ग हथं सिरसावत्तं मथए अंजलिं की एवं वसी' मने पन्ने हाथोनी मele नावाने मने तेने भरत ५२ ३२वी ते भा प्रमाणे हेवा वायो. "नमोत्थुणं अरहना ण जाच संपत्ताण नमोत्थुण केसि स कुमारसमण स मम धम्मायरियम धम्मोवदेसगस" मई त मा. વંતને મારા નમસ્કાર છે, મારા ધર્મોપદેશક ધર્માચાર્ય કેશીકુમાર શ્રમણને મારા नभ२४।२ छ: “वंदामिणं भगवतं तन्थग इहगए" डी डीने त्या वर्तमान भगवान ने पहन ४३ छु. "पामउ मे भगवं तत्थगए इहगय त्ति कटु चंदइ, नम मह” त्यो २हेत. सापान भने मही तुओ. मा प्रमाणे डीन ते प्रदेश २०ीय तेमने पहन ४ा, नमा२ . "पुचि पि ण मए केसिम्मकुमारसमणत अंतिए थूलपाणाइवाए पच्चक्खाए, जाव थूल परिग्गहे पञ्चवखाए'
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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