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________________ ३०४ %3 राजप्रश्नीयम मम करतले वा आमलकं जीव शरीराद अभिनिवयं खलु उपदर्शयितुम्।। तस्मिन् काले तस्मिन् समये प्रदेशिनो राजः अदरसामन्ते वायुकायः संवृत्तः, तृणवनस्पतिकायः एजते व्यजते चलति स्पन्दते घट्टते उदीत तं ते भाव परिणमते । ततः खलु केशीकुमारश्नमणः प्रदेशिराजमेयमवादीत्-पश्यसि दक्खा नात्र उवएसलहा समत्था णं भते ! मम करयल सि वा आमलयं जीव सरीराओ अभिनिवाहिता ण उबदमित्तए) हे भदन्त ! आप अवसर के ज्ञान में अतिनिपुण हैं दक्ष हैं-कार्य के सम्पादन में कुशल हैं, यावत् उपदेशलब्ध हैं-गुरु के उपदेश को प्राप्त किये हुए हैं. इसलिये हे भदन्त ! शरीर से जीव को निकाल कर क्या श्राप हस्ततल में स्थित आंवले की तरह उसे मुझे दिखा सकते हैं ? (तेण कालेण तेण समएणपए. सिस्स रणो. अदूरसामते वाउयाए संवुत्ते) उस काल और उस समय में प्रदेशी राजा के नजदीक-न अतिदूर और न अतिपास स्थान पर । घायुकायप्रवृत्त हुआ (तणवणस्सइकाए एयई, वेयइ, चलेइ, फंदई, घटइ, . उदीरइ, तन भावं परिणमइ) इससे तूंणवनस्पतिकाय सामान्यतः एवं विशेषतः कंपित होने लगा, इधर से उधर रूकने लगा. परस्पर में संघर्षित होने लगा एवं कोई२ जमीन ऊपर ही रूक गया. इस तरह वह तृणवनस्पतिकाय एजनादिरूप भिन्न२ प्रकार के व्यापार में परिणत हो गया (तए ण अइच्छेया दक्खा जाव उचएसलद्धा समत्था णं भंते ! ममं करयलोस . वा आमलयं जीवं सरीराओं अभिनिवद्वित्ता णं उवदंसित्तए) महात! माप અવસરને સરસ રીતે જાણવામાં અતિ નિપુણ છે, કાર્યના સંપાદનમાં કુશળ , થાવત્ ઉપદેશ લબ્ધ છે, ગુરૂના ઉપદેશને પ્રાપ્ત કરેલ છે. એથી જ હે ભદન્ત ! શરીરમાંથી જીવને બહાર કહાડીને શું તને હસ્તામલક, મને બતાવી શકે છે? (ते णं कालेणं तेणं समएणं पएसिस्स रणो अदरसामंते वाउयाए संयुत्ते) તે કાળે અને તે સમયે પ્રદેશી રાજાની પાસે ન અતિ દૂર અને ન અતિ પાસેના स्थान ५२ वायुय प्रवृत्त थयो. (तणवणस्सइकाए एयई, वेयइ, चलइ. फंदइ, घट्टइ, उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ) नाथी तृणवनस्पतिय सामान्यतः અને વિશેષતઃ કંપિત થવા માંડે. આમથી તેમ નમવા માંડશે, પરસ્પર સંઘર્ષિત થવા માંડે, અને કેઈક જમીન પર જ નમી ગયે. આ પ્રમાણે તે તૃણ વનસ્પતિ ४ाय मेनाहि३५ मिन्न भिन्न तना व्यापारमा परिणत थ६ गया. (तए णं, .
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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