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________________ 150 २९७ सुबोधिनी टीका सू. १५० सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशीराजवर्णनम् सणवेइ ४ | जाणासि णं तुम पएसी ? एएसि चउन्ह पुरिसाणं S के ववहारी के अववहारी ? ! होता !! जाणामि तत्थ णं जे से पुरिसे देइ णो सण्णवेइ सेणं पुरिसे ववहारी, तत्थ णं जे से पुरिसे तत्थ णं जे से पुरिसे णो देइ सण्णवेइ से णं पुरिसे बवहारी २, देइ विसपणवेइ वि से पुरिसे वबहारी ३, जो देइ णो णवेइ से णं अववहारी ४ । एवामेव तुमपि ववहारी, तत्थ णं जे से पुरिसे णो चैव णं तुमं पएसी ! अववहारी ॥सू० १५०॥ लक्ष बाली अपनी छाया - ततः खलु केशकुमारश्रमणः प्रदेशिराज मेवमवादीत्-जानासि खलु त्व प्रदेशिन् ! कति व्यवहारकाः प्रज्ञप्ताः 21 हन्तः !! जानामि - चत्वारो व्यवहारकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - ददाति नामकः नो संज्ञापयति १ संज्ञापयति नामैको नो ददाति २, एको ददाति अपि संज्ञायति अपि f. 'तए णं केसीकुमारसमणे' इत्यादि । 0 2017 1. सूत्रार्थ - (तए णं) इसके बाद (केसी कुमारसमणे) के शीकुमार श्रमणने : (परसि राय एवं वयासी) प्रदेशी राजा से ऐसा कहा - ( जाणासि णं तुम पएसी ! कइ ववहारगा पण्णत्ता ?) हे प्रदेशिन् ! व्यवहार कितने होते हैं, जाणामि) हां, भदंत ! जानता, क्या तुम इस बात को जानते हो ? हदें गये हैं । (ल जहा- द६. हुँ (चन्तारि ववहारगा पण्णत्ता) व्यवहार चार नामेगे, णो सण्णवेइ १ सण्णवेह नामेगे जो देह २, एंगे देइ वि, सण्णवेइ 'तएण केसीकुमारसमणे' इत्यादि। .. सूत्रार्थ – (तए णं) त्यार पछी (केसीकुमारसमणे) देशी कुमार श्रमाणे (पएस राय एवं वयासी) अहेशी शन्नने या प्रमाणे उर्छु- (जाणासि णं तुम पसी ! कई ववहारगा पण्णत्ता ?) हे अहेशिन ! शुतभे लगे है। व्यवहार डेंटली नतना डेोयं छ ? (हंता, जाणामि) si, महतो! लागु छ (चत्तारि हारंगा पण्णत्ता) व्यवहार यार उडेवाय छे. (त जहा देइ, नामेगे, णो संण्ण वेइ १, सण्णवेइ नामेगे णो देइ २, एगे देइ वि, सण्णवेइ वि ३, एगे
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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