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________________ सुबोधिनी टीका सू. १३१ सूर्याभिदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशीराजवर्णनम् १८३ पुन पासाणयाए ? तं जइ णं से। अजए णं मम आगंतुं वएजाएवं खलु नन्तुया ! अहं तब अजए होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए अधम्मिए जात्र नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तोम, तरणं अहं सुबहुं पावं कम्म कलिकलुस समजिणित्ता नरपसु उववण्णे त माणं नया ! तुमपि भवाहि अधम्मिए जाव णो सम्म करभरवित्ति पवतेहि, माणं तुमपि एवं वेव सुबहु पावकम्मं जाव उवयमिहिसि तअ णं से अजए ममं आगंतुं वएजा तो णं अहं सहेजा पत्तिएजा रोएजा जहा अन्नो नीवो अन्न' सरीर णो तं जीवो णो तं सरीरं, जम्हा णं से अजए ममं आगंतु नो एवं वयासी तम्हा सुपइट्टिया मम पन्ना समणाउसो ! जहा तज्जीवो तं सरीरं ॥ सू० १३१ ॥ छाया - ततः खल्लुस प्रदेशी राजा केशिनं कुमारभ्रमणमेवमवादीत् यदि खलु दन्त ! युष्माकं श्रमणानां निर्ग्रन्धानामेषा संज्ञा यावत् समवसरणं यथा - अन्यो जीवः अन्यत् शरीरम् न तत् जीवः स शरीरम् एवं खलु मम आर्यकोऽभवत् इहैव 'तर ण से पएसी राया' इत्यादि । सूत्रार्थ :- (तएण से पएसी राया केसिंकुमार समण एवं वयासी) तब उस प्रदेशीराजाने केशीकुमारश्रमण से ऐसा कहा - (जह ण भंते ! तुभं समणाणं निग्ग थाण एसा सण्णा जाव ममोसरणे) हे भदन्त ! यदि आप श्रमण निर्मन्थों की ऐसी संज्ञा यावत् समवसरण है कि (अष्णो atri or सरीर) जीव अन्य है और शरीर अन्य है (णो त जीबी त 'त एवं से परसी राया' इत्यादि । सूत्रार्थ - (त एणं से पएसी राया के सिकुमारसमण एव बयासी) त्यारे ते प्रदेशी शन्तये शीकुमार श्रभाणुने भाप्रमाणे ( जइ णं भंते ! तुरंभ समणाणं निग्गंथाणं एसा सण्णा जाव समासरणे) हे लहांत ! ले साथ शेषा श्रम निर्थ यानी श्रेवी संज्ञा यावत् सभवसर छे (अण्णो जीवे। अण्णं सरीर ) लव अन्य अने शरीर गन्य छ (जो तं जीवो त सरीरं) व शरी२३५ 1
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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