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________________ राजप्रश्नायसूत्र ૧૪૮ सिणा रन्नो एवं बुत्ते समाणे हेतु जाव-हियए उवट्टवेइ एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणइ । तएणं से पएसी राया चित्तस्स सारहिरूस अंतिए एयमटुं सोचा णिसम्म हटुतुट-जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसगैरे साओ गिहाओ णिग्गच्छइ, जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटं आसरहं दूरुहइ, सेयवियाए नयरीए मज्झंसञ्झेणं णिग्गच्छइ । तएणं से चित्ते सारही त रह गाइ जोयणाई उभामेइ । तएणं से पएसी राया उण्हेण य तहाए य रहवाएण य परिकिलंते ससाणे चित्तं साराह एवं वयासी-चित्ता ! परिकिलंते में सरीरे परावत्तेहि रहं । तएणं से चित्ते सारही रह परावत्तेइ जेणेव सियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, पएसिं राय एवं क्यासी-एस गं सामी ! मियवणे उज्जाणे एत्थणं आसणं समंकिलामं सम्मं अवणेमो। तएणं से पएसीराया चित्तं सारहिं एवं वयासी-ए होउचित्ता ।१२५॥ छाया-ततः खलु स चित्रः सारथिः कल्य प्रादुम भातायां रजन्यां फुल्लोत्फुल्लकमलकोमलोन्मीलिते अथाऽऽपाण्डुरे प्रभाते कृत न यमायके सहस्र 'तए ण से चित्ते सारही' इत्यादि। मुत्रार्थ--(तए ण) इसके बाद (से चित्ते सारही) वह चित्रसारथि (कल' पाउप्पभायाए रयणीए) दूसरे दिन जब कि प्रातःकाल के रूप में बदल गई और (फुलुप्पलकमल कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरें पभाए कयनियमावस्सए) कमल विकसित हो चुके तथा नियम और आवश्यक कृत्य जिसमें लोग कर चुके थे ऐसा पीतधवल प्रभात जब हो गया (सहस्स 'तए ण से चित्ते सारही' इत्यादि। . . . सूत्रार्थ:-(त एण) त्या२ पछी (से चित्त सारही) ते यिसाथि-(कल्ल' पाउप्पभायाए रयणीए) मी विसे न्यारे रात्री प्रात:el ३५मा परिशुत थs 5 मने (फुलुप्पलकमलकोप्नलुम्मिलियस्मि अहापंडरे पभाए कयनियमावस्सए) ४भणी विस पाभ्यां तम नियम अने मा१२३४ इत्यो मा सोही वडे ५॥ ४२वाभा माव्या. मे पीतवर मात यारे थयु (सहस्सरस्सिम्मि दिण यरे -
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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