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________________ ११४ राजप्रश्नीयसूत्रे वरोहति, तद् महाध यावद् यताति, यत्र व प्रदेशी राजा तत्रत्र उपागच्छति, प्रदेशिन रानान करतल यावद् वयित्वा तन्महार्थ यावत् उपनयति । तताखलु स प्रदेशी राजा चित्रस्य सारथेस्तन्महाय" यारत् पत्तीच्छति चित्र' सारथि सत्कारयति सन्मानयति प्रतिविसर्जयति ! ततः खलु स चित्र सारथिः प्रदेशिना राज्ञा विसर्जितः सन्द इष्ट यावहृदयः प्रदेशिनो राज्ञः कर उसने घोडों को रोका (रहं ठवेइ) और रथ को हासा किया। (रहाओ पञ्चोरुहइ) फिर वह उस रथ से नीचे उत्तरा (तमस्य बाब गेहइ) नीचे उतर कर उसने उस सहाथ आदि विशेषणों पाले प्राकृत को हाथ में लिया (जेणेव पएसी राया लेणेव उदागच्छद) और जहां प्रदेशी राजा था वहां गया (पएसीराय करयल नाव बद्धावेत्ता तं माल्थं नाव उणेइ) वहाँ जाकर के उसले प्रदेशी राजा को दोनों हाथों की अंजलि बनाकर एवं उसे मस्तकपर से घुमाकर नमस्कार किया और जयविजय शब्दों का उच्चा रण करते हुए उसे बधाई देकर फिर उसने उसके समक्ष लाये हुए पारितोषिक-मेट अर्पण किया (तएणं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महस्य जाव पडिच्छइ) प्रदेशी राजाने चित्र सारथी के उस महाथ आदि विशेषणों वाले प्राभूत को अंगीकार कर लिया (चित्तं सारहि सका. रेड, सम्माणेह पडिविसज्जेई) और चित्र सारथी का सत्कार किया एवं सन्मान किया. बाद में उसे विसर्जित कर दिया. (तएणं से चित्रो सारही ६५स्थान या ती. (तुरगे निगिण्डइ) त्या पांथान त मान SIL भ्या. (रछठवेह) मने २थने थामा०ये. (रहाओ पच्चोसाई) त्या२ पछी ते २५मा नये अती. (त महत्व जाय गेण्हई) नीयतरीन तरी त भवार्थ पोरे विशेष|पाणी टेट पाताना थिभा सीधी. (जेणेव राया तेणेव उवागच्छइ) भने यो प्रदेशी in इतत्यो गयो. (पएसी राय करयल जाब बदावेत्तान महत्व जाच उवणेह) त्यां न तो प्रदेशी शतने भन्ने थाना અંજલિ બનાવીને તેને મસ્તક પર ફેરવને નમસ્કાર કર્યા અને જયવિજય શબ્દોનું ઉચ્ચારણું કરીને તેને વધામણી આપી. ત્યાર પછી તેણે પિતાની સાથે લાવેલી ભેટને ने भक्ति ४१. (तए ण से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्य जाव पडिच्छइ) प्रदेशी २० भित्रसाथिनी ते महाथ मेरे विशेष|वाजी सटन २वी सीधी. (चित्त साहिं सकारेइ, सम्माड पडिविसज्जेइ) मन ચિત્રસારથીને સત્કાર તેમજ સન્માન કરીને પછી તેને ત્યાંથી વિસર્જિત કર્યો (त एण से चिने सारही ५एसिणा रणा विसज्जिए समाणे हद जाव
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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