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________________ ८४ राजप्रश्नीयमत मूलम्-तएणं से सूरियाभे देवे तेसिं आभियोगियाणं देवाणं अंतिए एयसह सोचा निसम्म हट्टतुट जाव हियएं पायत्ताणियाहिवई देवं सदावेइ, सदावित्ता एयं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सूरियाभे विमाणे सुहम्माए सभाए मेघोघरसियगंभीरमहरसई जोयणपरिमंडलं सुसरघंटे तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे २ महयार सदेणं उग्घोसेमाणे२ एवं वयाहि-आणवेइ णं भो सूरियाभे देवे गच्छद णं भो सूरियाले देवे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए णय. रीए अंबसालवणे चेइए समणं भगवं महावीरं अभिवंदित्तए, तुन्भेऽवि णं भो देवाणुप्पिया! सव्विड्डीए जाव णाइयरवेणं णियगपरिवाल सद्धिं संपरिखुडा साइं२ जाणविमाणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहीणं चेव सूरियाभस्स अंतिए पाउन्भवह ।। सू० ८॥ छाया-तत खलु स सूर्याभो देवः तेपाम् आभियोगिकानां देवानामन्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्ट यावदृदयः पदात्यनीकाधिपति देवं 'तएणं से मुरियाभेदेवे' इत्यादि । मुत्रार्थ-(नएणं से मरियाभे देवे) इसके बाद वह मूर्याभदेव (तेर्सिआभियोगियाणं देवाणं अंतिए) उन आभियोगिक देवों के पास से-मुख से (एयमट्ट सोच्चा) इस अनन्तरोक्त अर्थ को सुनकर (निसम्म) और उसे हृदय में अवधारण कर (हतुट्ट जाव हियए) बहुत अधिक हर्पित हुआ, संतुष्ट चित्त हुआ यावत् हर्ष से उसका हृदय भर गया. उसने उसी 'तएणं से मूरियाभे देवे' इत्यादि । सूत्रा:-तएणं से मरियाभे देवे) त्या२ पछी ते सूर्यामहेवे (तेसिं आभियोगियाणं देवाणं आतिए) ते मालियोनि वानी पासेथी-मुमथा(एयम, सोच्चा) AL प्रभानी वात सामजीन (निसम्म) मने तेने (स्यमा अवधारित शने (हठ्ठतु जाव दियए) भूम०४ पधारे उष पाभ्यो, सतुष्ट थित्त वाणा - थयो यावतू षथा रेनु वय तरमाण थ६ गयु छ मेवातशे तत्क्षा (पायत्ताणि
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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