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________________ %ATube ६२ राजप्रश्नीयस्त्रे स्थिराग्रहस्तः प्रतिपूर्णपाणिपादपृष्टान्तरोरुपरिणतः घननिचितवृत्तवलित स्कन्धः चर्मेष्टकट्ठघणमुप्टिकसमाहतगात्रः उरस्यबलसमन्यागतः तलयम लयुगलपरिधानभवाहु: लवनप्लवनजवनमसनसमर्थः छेकः दक्षः प्रप्ठः कुशलः मेधावी निपुणशिल्पोपगतः एक महान्त शलाकाहस्तकं वा दण्डसंप्रो. च्छनी वा, वेणुशलाकिनी वा गृहीत्वा राजागण वा रानान्तःपुर का देव. त्पन्न हो, वलशाली हो, अल्पानक-रोगरहित हो, स्थिरसंहननवाला हो, स्थिर अग्रहस्तवाला हो, (पडिपुण्णपाणिपायपिट्टतरोरुपरिणए) जिसके परिपूर्ण सुपुष्ट पाणिपाद (हाथ पग). पृष्ठान्तर एवं उस वृद्धिमाप्त हों (वणनिचियववलियखंधे) अतिशय निचित-निविडतर चयको माप्त-तथा मांसल जिसके दोनों गोल२ कन्धे हों, (चम्मेदृगधणमुटियसमाहयगए) चर्मेटक, द्रुघण एवं मुष्टि इनके प्रहारों से मल्ल की तरह जिसका गाघ्र विशेषप रिपुष्ट हो. (उरस्सबलसमन्नागए) वक्षो बल से जो समन्वित हो, (नल जमल जुयलफलिहनिभवाह) जिस के दोनो बाहू, युगपत् उत्पन्न दो तालवृक्षों के और अर्गला के जैसे अतिसरल, दीर्घ और पोवर-(पृष्ट) हो (लंघणपलवणजवणपमदणसमत्थे) लांघने में, कदने में, अतिशीघ्रगमनकरने में और प्रमर्दन-किसी वस्तु को चूर २ करने में जो समर्थ हो (छेए, दक्खे, पहे, कुसले, मेहाची, निउणसिप्पोवगए) छेक हो, दक्ष हो, प्रष्ठ हो, कुशल. हो, मेधाजी हो, एवं निपुण शिल्पोपगन हो (पगं मह सलागाहस्थगं बा, दंडसंपुच्छगि चा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं पा रायतेपुर वा) ત્પન્ન–હોય, બળવાન હોય, અલપાત-સાગરહિત હોય, સ્થિર સંહનન વાળે હાથ स्वि. मयतया डाय, (पडिपुग्णपाणिपायपितरोपरिणए) रेन डाय सपूर्णशते सुपुष्ट-Yiतर बने -वृद्धि प्राप्त अय, (घणनिचियववलियख धे) मती निति-मिति२ यय प्रात तमा पुष्ट ना मन मना है।य; (चम्मेदृग दुषणमुष्टियसमाहयगए) य४, दुध भने भुष्टि भेना प्राशयी मनी भरेना मात्र विशेष परिपुष्ट छाय, (उरस्सबलसमन्नागए) वक्ष-(छाती) था २ समन्वित खाय, (तलजमलजुयलफलिहनियवाह) ना मने माईमा साथ ઉત્પન્ન થયેલા બે તાલવૃક્ષો અને અગલા જેવા અતિસરલ, દીર્ઘ અને પીવર (પુષ્ટ). डाय, (लघणपलवणजवणपमदणसमत्थे) माणगामा वामां, गतिशी गमनमा भने अमन-पिY परतुना । ४२वाभा २ समर्थ डाय, (छेए, दक्खे, पट्टे, - कुसले, मेहावी निउणसिप्पोवगए) छ४ छाय, ४क्ष छाय, छाय, अशा डाय, बापी खोय भने निपुY शिस्त लोय, (एगमह सलागाहत्थग वा, दंडसंपुच्छणि वा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वो रायतेपुरं वा)
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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