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________________ ५६ राजप्रश्नो तरजोइसियवेमाणिया देवा अरहंते भगवंते बंदंति नर्मसंति वदित्ता नमंसित्ता तओ साई साई णामगोयाई साहिति तं पोराणमेयं देवा ! जाव अव्भणुपणायमेयं देवा ॥ सू. ६ ॥ छाया - देवा इति श्रमणो भगवान महावीरो देवानेवमवादीत् - पौराणतद् देवाः । जीतमेतद् देवाः ! कृत्यमेतद् देवाः ! करणीयमेतद् देवाः ! आचीर्णमेतद् देवाः । अभ्यनुज्ञातमेतद् देवाः । यत् खलु भवन पतिव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिका देवा अर्हतो भगवतो वन्दन्ते नमस्यन्ति वन्दित्वा नमः 'देवाइ समणे भगवं' इत्यादि । सूत्रर्थ - - (देवाइ समणे भगवं महावीरे देवा एवं वयासी) हे देवों ! इस प्रकार से सम्बोधित करके श्रमण भगवान् महावीर ने उन देवों से ऐसा कहा - ( पोराणमेयं देवा ! जीयमेयं देवा ! किचमेयं देवा ! करणिजमेयं देवा !) हे देवो यह जो आगे कहे जाने वाला कार्य पूर्वदेवों की परम्परा से आ रहा है, क्यों कि पूर्व देवों ने इसका आचरण किया है । हे देवो ! यह जीत कल्प है अर्थात् यह देवों का आचार है । हे देवों यह कृत्यकरने योग्य है । अर्थात् यह देवों के कर्तव्यकोटि में गया है । (आइनमेयं देवा) हे देवों ! इसका पुरातन देवोंने भी आचरण किया | (अण्णामेव देवा) पूर्व के सब इन्द्रोंने भी इसके लिये आज्ञा दी | ( जण्णं भवणचइवाणमंतर जोइसियवेमाणिया देवा अरिहंते भगवंत कहा 'देवाइ समणे भगवं' इत्यादि । सूत्रार्थ - (देवाह समणे भगवं महावीरे देवा एवं वयासी) हे देवो ! आ रीते सगोधित उरतां श्रभशु भगवान महावीरे ते देवाने या प्रमाणे - ( पोराण मे यं देवा ! जीयमे दे ! मेयं देवा ! करणिज्जमेयं देवा !) हे देवा ! हुवे पछी જે કાર્ય કહેવાશે તે પૂર્વ`દેવાની પર પરાથી ચાલતુ આવે છે. કેમકે પૂર્વદેવાએ આનું अथर यु' छे, हे हेवे!! आा त छे. भेटखे हैं आा हेवन! आयार छे. हे देवा! ! આ કૃત્ય કરવા ચેાગ્ય છે. એટલે દેવોની કર્તવ્ય કોટિમાં બતાવવામાં આવ્યુ છે. (आइन्नमेवं देवा) हे देवो ! पुरातन देवोगे पशु भानुं न्यायरशु यु छे. (अणुणायमेयं देवा) पडेसांना मघा इन्द्रोखे पशु सेना भाटे माझा उरी छे. (जणं भणाणमंतर जे इसिय वैमाणिया देवा अरहंत भगवंते वदति नमसंति) लवनवासी, वानव्य ंतर, ज्योतिषि ने वैभानि देव अरिहंत लगवातानी बहना
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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