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________________ Bom सुबोधिनी टीका. सू. ९६ सूर्याभदेवस्य प्रतिमा जाचर्चा ६५९ आम बुध्येत तदा तामपि अवश्यं समुल्लिखेन, यतथ न मा जैनमङ्गिता तो भगवता नलेो न कृतः इति निश्चयते । 21 f (ख) उपासकदशाङ्गे चं अनन्वस्य द्वादशवतानां वर्णन वर्तते, तत्र, प्रतिमापूजायाः अपि समुल्लेखा वर्तति आसीत् किञ्च यथा उपर्युक्त द्वादशत्रतानां अतिचार, प्रत्येक पृथक पदकू प्रतिपादितस्तथैव तुल्ययुक्त्या प्रतिमापूजाया अतिचारोऽपि पृथकूं प्रतिपादयितव्य आसीत् किन्तु कुत्रापि तन्नाम मात्रमपि नोलिखितम्, तावतापि निची ते यत् प्रतिमापूजा नास्तीति । (ग) आनन्दादि श्रावकाणां धनमपसामग्रीणां पूर्णतया वर्णन मिति किन्तु तद्वर्णसङ्गे वाजासामग्रीणां काचित् "चर्चाऽपि नः कृता तत्र यदि इनिनानायकी भवेत्तदातिस्याः तत्सामग्रचाञ्च कथनमपि • A $ 1 ! R FZ. 65 ८ एक 5 ८ bi 酢和 ऐसा नहीं किया है- मो इमका कारण यही है कि वह मूर्तिपूजा जनधर्म की अंगभूत नहीं है, इसीलिये भगवान ने उसका उल्लेख न यही निि ता है। IF Pm7Y: श्र IS C 1 155 " १ SPE 1 71 (ख) उदशांग आनन्द के १२ बों का वर्णन है, नहीं पर मूर्तिपूजा का वर्णन नहीं है, जो हि करना उचित था, तथा जिस प्रकार १२ व्रतों के अतिचार पृथक रूप से कहे हैं उसी प्रकार से तुल्य युक्ति के अनुसार मूर्तिपूजा के भी अतिचारों को पृथक रूप से कहना चाहिये था, किन्तु कहीं पर भी इनका नाममात्र भी उल्लिखित 'नही' इससे भी यहीं निथप दाता है' 'कि' मूर्तिपूजा है' हीं नहीं । (ग) आनन्दादि आपको की धनसंपत्ति का जब पूर्णरूप से वर्ण किया गया है, तो उस वर्णन के ममंग' में मूर्तिपूजा की सामग्री 'की' भा चाहिये थी. कुछ भी नहीं देखी जाती है पह 1 - '' ܙ Fol गीत, से Di For પૂજાનું પણ ચાક્કસ ઉલ્લેખ કરવામાં આવ્યા જ હતા तेरमा श्रीमय अध्याय, स्थाने खाना ઉલ્લેખ કર્યો નથી એથી એ વાત સિદ્ધ થાય છે કે મૂર્તિ પૂજા જૈનધમની અગભૂતા નથી. A) ઉપાસકદશાંગમાં આનદનારે તેનું વર્ણન છે. ત્યાં મૂર્તિ તે પૂજાનું વર્ણન નથી, જો કે ત્યાં વર્ણન હોવુ જોઇએ જ. મન જેમ ૧૨ વ્રતાના અતિયારે नव्या समा ॥ तियाना ખુદા રૂપમાં કહેવામાં આવ્યા તેમ તુલ્યયુકને અનુસાર મૂર્તિ પૂતના લેખ જુદા જુદા રૂપમાં કરવો જોઇએ પણ આવી કોઇપણ એ પણ આ વાત સિદ્ધ થાય છે. મૂર્તિ પૂજા જ નર્સિ ...''(ग)"मान' हैं 'कोरे श्रावनी धनसंपत याविस्तृत T સ્થાન ઉલ્લેખ નથી. i Gir JI
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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